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काकी आई शहर से, सुनो शहर का हाल,
फ़ार्म हाउस बन रहे, धनवानों की चाल ।

धनवानों की चाल है, खेती का क्या काम
बचजाये बस आयकर,ये ही उनका काम ।

फार्म हाउस में हो रहे, कैसे कैसे काम,
नेता बने किसान है, छलक रहे है जाम ।

किसान खेतहीन हुए, जमींदार सब नाथ,
बँट में खेत जोत रहे, घरवाली के साथ ।

घरवाली को साथ ले, खेतो में जुट जाय,
दुपहरी की रोटी भी, छाँव तले ही खाय ।

जनता के इस राज में, बदल गयी तरकीब,
नेता सब मालिक बने, देखा राज अजीब ।

देखा राज अजीब है, नेता माला माल,
जनता अब कंगाल है, षड्यंत्रों का जाल ।

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 26, 2012 at 1:46pm
नमस्कार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, फार्म हाउस में रहते  ठीक रहेगा ?
किसान की जगह खेतिहर खेतहीन है, जमींदार सब नाथ  ठीक है क्या ?
आदरनीय समझाए 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 26, 2012 at 1:29pm

दोहा विधा से सम्बन्धित पोस्ट आप यदि पढें तो याद आयेगा कि छंद के द्वितीय और चतुर्थ चरण के अंत की तरह प्रथम और तृतीय चरण के अंत का नियम भी है. यानि, उपरोक्त चरणों का अंत १२ या १११ यानि लघु गुरु या लघ लघु लघु से होता है. तब ’फार्म हाउस में होते’ कैसे संभव हो सकता है ?

दूसरे, दोहा का प्रारम्भ १२१ से नहीं किया जाता.

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 26, 2012 at 1:14pm
ठीक कहा है अपने आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, छंद के नियम भी उतने ही आवश्यक है, क्यों की लिखित छंद तो 
आगे के लिए साक्ष्य/अनुकरणीय/लिपिबद्ध होते है जिनमे त्रुटी क्षम्य नहीं हो सकती । आपके सुझाव मेरे लिए निर्देश 
है । हर्दिक आभार 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 26, 2012 at 1:08pm

हार्दिक धन्यवाद डॉ प्राची सिंह जी, फार्म हाउस बना रहे लिखना चाहता था जो टंकण त्रुटी वश बन रहे  हो गया । पर आपकी परखी नगाहों ने पकड़ लिया ।  अगली पंक्ति में फार्म हाउस में होते,कैसे कैसे काम,  करने से ठीक हो जाएगा । सुझावों के लिए हार्दिक आभार स्वीकारे ।

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 26, 2012 at 12:05pm

फार्म हाउस में हो रहे..यहाँ भी मात्रा १४ हो रही है आदरणीय लक्ष्मण जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 26, 2012 at 12:02pm

वाह, ’सीखने-सिखाने’ की परंपरा का सुन्दर निर्वाह हुआ है. आदरणीय लक्ष्मण जी, दोहों पर आपको यथासम्भव टिप्स मिलते रहते हैं. आप उन टिप्स को सदा ध्यान में रखें. और रचना-कर्म के समय उनका प्रयोग करें. मात्राओं की गणना के साथ-साथ छंद से सम्बन्धित कुछ नियम जानने भी आवश्यक हैं.

आपके कथ्य उचित साधन (शिल्प) चाहते हैं. वह आप ही दे सकते हैं.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 26, 2012 at 11:53am

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, 

आपकी सतत संलग्नता और मात्रा गणना पर आपका प्रयास  इस दोहावली में नज़र आ रहा है .

इस प्रयास में मात्रिक गणना सधी हुयी है, सिर्फ एक जगह ही विषम चरण में मात्रा १२ है, इस हेतु आपको बहुत बहुत बधाई.

काकी आई शहर से, सुनो शहर का हाल,
फ़ार्म हाउस बन रहे=१२ , धनवानों की चाल ।

धनवानों की चाल है, खेती का क्या काम
बचजाये बस आयकर,ये ही उनका काम ।

फार्म हाउस में हो रहे, कैसे कैसे काम,
नेता बने किसान है, छलक रहे है जाम ।

किसान खेतहीन हुए, जमींदार सब नाथ,
बँट में खेत जोत रहे, घरवाली के साथ ।

घरवाली को साथ ले, खेतो में जुट जाय,
दुपहरी की रोटी भी, छाँव तले ही खाय ।

जनता के इस राज में, बदल गयी तरकीब,
नेता सब मालिक बने, देखा राज अजीब ।

देखा राज अजीब है, नेता माला माल,
जनता अब कंगाल है, षड्यंत्रों का जाल ।

आप अब गेयता को भी साधने का प्रयत्न करें.

हार्दिक शुभकामनाएं .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 26, 2012 at 9:52am

होंसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार आपका भाई श्री अशोक रक्ताले जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 25, 2012 at 8:10pm

आदरणीय लड़ीवाला जी 

                   सादर, बहुत सुन्दर भाव युक्त दोहों पर सादर हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2012 at 5:09pm

हार्दिक आभार आपका आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी 

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