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मौलिक एवम् अप्रकाशित रचना

महिला दाता प्रेम की, बना भिक्षुक नर जात !
माया ममता ना मरी, मरा अहम् बड़जात !!

दामिनी भारत की बेटी, कल्पना भरे उड़ान !
इंदिरा किरण वेदी चॅढी, सुनीता गगन शान!!

बच्चे अच्छे एक या दो, जीवन का श्रृंगार!
पढ़ते - पढ़ते ग्यान दे, बेटी को मत मार !!
(के.पी.सत्यम)

मौलिक एवम् अप्रकाशित रचना !

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Comment by Yogi Saraswat on March 11, 2013 at 11:31am

बच्चे अच्छे एक या दो, जीवन का श्रृंगार!
पढ़ते - पढ़ते ग्यान दे, बेटी को मत मार !!

बेटी ही भविष्य हैं ! सार्थक शब्द

Comment by asha pandey ojha on March 9, 2013 at 9:14pm

waaaaah bahut hi uttm dohe naree ke samman me

Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2013 at 7:23pm

bhai kewal ji....maine apko pahle hi bataya tha....ek baar niyam pad lo aap .........

adarneey saurabh sir ne bhi wahi kaha apko...................


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 9, 2013 at 3:15am

भाव और कथ्य से दोहे भले हैं. शिल्पगत जानकारियाँ छंदबद्ध रचनाओं के अत्यावश्यक हैं.

शुभेच्छाएँ

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