फिलहाल कुछ ऐसा कीजिए
चुन के कांटे फूल धर दीजिए
और कुछ संभव हो या ना ,
छत को चोग से भर दीजिए
बहुत अंधेरो की बोई फसल
रौशनी की भी मगर बीजिए
तीसरा नेत्र खोल के रखिए
चाहे दोनों आंखे भर लीजिए
हर कोई फोटो फ्रेम लगाए,
दिल में जगह मगर दीजिए
Comment
आदरणीय शुभ्रांशु जी ने जिस तरह से नए सदस्यों पर उंगली उठा दी है वह उचित नहीं है। वे स्वयं यदि पुराने सदस्य हैं तो शायद यह भी अवगत होंगे कि यहां किसी भी सदस्य पर आक्षेप करने की प्रथा नहीं है, जैसा मैंने अभी तक समझा है।
रही बात रचनाकार की गलती और उसकी प्रशंसा की तो मुझे नहीं लगता कि यहां किसी ने झूठी वाहवाही की है। मैंने अपनी पहली टिप्पणी में ही रचनाकार को गज़ल की कक्षा की लिंक दी और उसे पढ़ने को कहा है।
मुझे लगता है कि बेहतर यह होता कि शुभ्रांशु जी ने इस रचना में रचनाकार द्वारा की गयी गलती की तरफ इशारा किया होता जैसा अन्य गुरूजन किया करते हैं।
यहां यह भी ध्यान देने की बात है कि यदि रचनाकार कुछ सीखना चाहता है तो उसे अपनी रचना पोस्ट करने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं बचता। छोटी छोटी बातें आपसे कोई पूछना चाहे तो आपसे कोई कैसे पूछे शुभ्रांशु जी। मैंने कुछ प्रश्न पुराने सदस्यों से पूछना चाहा उनका उत्तर तो आज तक मुझे नहीं मिला। प्रश्न जस के तस उसी जगह पोस्ट हैं। आपने भी उन प्रश्नों का उत्तर देने की अभी तक जहमत नहीं उठायी। गुरूजनों द्वारा ही यह निर्देश दिया गया कि इस तरह से समस्या का समाधान नहीं होगा। उनका कहना था कि आप अध्ययन करिए फिर कोई रचना लिखने का प्रयास करिए जिससे कमियों का पता चल सके।
यह बेहतर भी होता है। अध्ययन करने के उपरान्त नियमों को ध्यान में रखकर कोई रचना लिखी जाए। फिर गुरूजन उस पर जो टिप्पणी करते हैं उससे कमियां भी पता चलती हैं और सुधार की संभावना भी बनती है।
आशा है नए और पुराने का द्वंद यहां प्रारम्भ नहीं होगा।
सादर!
मोहन जी मैं सदैव आपके साथ हूं बल्कि यहां का हर सदस्य आपके साथ है। बस प्रयास जारी रखिए।
भाई ब्रजेश जी ,
धन्यवाद, पूरी कोशिश करेंगे समझने की ,दोस्तों का साथ भी जरूरी
कृपया इस लिंक का लाभ उठाएं!
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होली की शुभकामनाएं!
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