For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोने का लोटा ,नंगे बदन पर लंगोटा !

 सुना भगवानों के पास धन बहुत,

और अपने देश में निर्धन-बहुत !

मंदिरों में जमा है अकूत सोना ,
वहीँ द्वार पर भूखी भीड़,दो,ना !

 

लक्ष्मी,मंदिर में,चढ़ावा ,अथाह ,

पापी पेट की दिखी न कराह,आह !

आपके घर आभूषण,स्वर्ण-भण्डार,
हे ईश,इसी से करदो निर्धन -उद्धार !

    

स्वर्ण का मुकुट,रत्नों के ढेर,साईँ,

इन्हें नसीब नहीं रोटी की परछाईं !

अर्पित हुआ आपको सोने का लोटा,

देख लेते प्रभु,नंगे बदन पर लंगोटा !
                   _________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल

    (मौलिक ,अप्रकाशित रचना )

Views: 651

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on June 19, 2013 at 9:44am

सुन्दर रचना है प्रो साहब 
हार्दिक बधाई स्वीकारें 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 14, 2013 at 9:24pm

आ0 विशम्भर सर जी,  ’ सुना भगवानों के पास धन बहुत, और अपने देश में निर्धन.बहुत !’  बहुत ही सुन्दर रचना।  बधाई स्वीकारें।   सादर,

Comment by Sumit Naithani on June 14, 2013 at 1:07pm

sunder

Comment by vijayashree on June 14, 2013 at 12:18pm

लक्ष्मी,मंदिर में,चढ़ावा ,अथाह ,

पापी पेट की दिखी न कराह,आह !

आपके घर आभूषण,स्वर्ण-भण्डार,
हे ईश,इसी से करदो निर्धन -उद्धार

 

अति सुंदर प्रस्तुति

 

Comment by coontee mukerji on June 14, 2013 at 12:49am

आदरणीय शुक्ल जी , आपकी छोटी सी रचना ने बड़े बड़े प्रश्न खड़े कर दिये हैं....../सादर / कुंती .

Comment by ram shiromani pathak on June 13, 2013 at 1:28pm

वाह आदरणीय बहुत सुन्दर तरीके से व्यंग किया है अपने//हार्दिक बधाई

Comment by विजय मिश्र on June 13, 2013 at 11:48am
मार्मिक भी और भगवानों के पास पहुंचानेवाले अविवेकी धनवानों पर तंज भी , सुंदर . बधाई स्वीकार हो .
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 13, 2013 at 7:37am

कहीं पर्वत कही खाई!

प्रभु ने है बनाई !

प्रभु दीनबंधु कहलाते हैं.

दीन उनके ही गुण गाते हैं  

प्रभु, थोड़ी दया कीजिये 

दीनो का दुःख हरण कीजिये!

पर  जो वर्णन शुक्ल साहब ने किये है 

यह तो उनके भक्तों के करम हैं. सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
21 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service