For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नियमों की सरहदें

नियमों की सरहदें

 

उलझी हुई मानवीय अपेक्षाओं से अनछुआ

तुम्हारे लिए मेरा काल्पनिक अलोकित स्नेह

किसी सांचे में ढला हुआ नहीं था,

और न हीं वह पिंजरे में बंद पक्षी-सा

कभी सीमित या संकुचित था लगा।

 

एक ही वृक्ष पर बैठे हुए हम

दो उन्मुक्त पक्षिओं-से थे,

कभी तुम चली आई उड़ कर पास मेरे,

और मैं गद-गद हो उठा, और कभी मैं

हर्षोन्माद में आ बैठा डाल पर तुम्हारी।

 

शैतान हँसी की हल्की-सी फुहार लिए,

तुमने मेरे लिए अपनी आँखें बिछा दीं

और हम दोनों को लगा कि हमने

कल्पनातीत उस स्वर्णिम पल में

रिश्तों के नियमों की सरहदें लांघ ली...

 

                      -------

                                      - विजय निकोर

                                        २५ जून, २०१३

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 774

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on January 30, 2014 at 1:23pm

//ऐसे सुन्दर स्नेह भावों में पगी सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई //

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण भाई।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 25, 2014 at 6:30pm

शैतान हँसी की हल्की-सी फुहार लिए,

तुमने मेरे लिए अपनी आँखें बिछा दीं

और हम दोनों को लगा कि हमने

कल्पनातीत उस स्वर्णिम पल में

रिश्तों के नियमों की सरहदें लांघ ली...-........पक्षियों  को प्रतिक बना कर अप्रतिम स्नेह के भाव दर्शाती रचना | जब अप्रतिम प्रेम होता है तब सरहदे नजर नहीं आती और अगर आ भी जावे तब भी प्रेमी कहाँ मानता है | ऐसे सुन्दर स्नेह भावों में पगी सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by vijay nikore on January 24, 2014 at 12:56pm

 

आदरणीय योगराज भाई, सादर प्रणाम। रचना की सराहना के लिए आपका अतीव धन्यवाद।

 

 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 15, 2014 at 2:31pm

//और हम दोनों को लगा कि हमने
कल्पनातीत उस स्वर्णिम पल में
रिश्तों के नियमों की सरहदें लांघ ली//

बहुत ही प्यारी सी खुश-फहमी है, जब कोई संवेदनशील ह्रदय किसी भी कैद या किसी भी सरहद को माने से इंकार कर देती है तो इसी तरह की भावनाएं जन्म लिया करती हैं. बहुत खूब आ० विजय निकोर जी.

Comment by vijay nikore on November 21, 2013 at 5:38pm

आदरणीया प्रिय़ंका जी:

 

इस रचना को "Like" में संजो रखने के लिए आपका हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on July 11, 2013 at 9:51pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय अशोक जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 10, 2013 at 8:08pm

बहुत सुन्दर भावुक करती रचना.आदरणीय विजय निकोर साहब सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by vijay nikore on July 5, 2013 at 3:30pm

आदरणीय बसंत जी:

 

इस कविता को आपने सराहा, मेरा लेखन सार्थक हुआ। मैं आपका आभारी हूँ।

 

सादर,

विजय निकोर

 

Comment by vijay nikore on July 5, 2013 at 3:27pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई:

 

// ..... आपकी रचना में परिलक्षित करने में आप सफल हुए हैं //

 

रचना को आपसे अनुमोदन मिला, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on July 5, 2013 at 3:23pm

आदरणीया प्रियंका जी:

 

कविता की सराहना के लिए आपका आभारी हूँ।

 

सादर,

विजय निकोर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
2 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
5 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
17 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service