शब्दों के घेरे
घेर लेते है मुझे
किसी चिड़िया की
मानिंद आ बैठते हैं
हृदय रूपी वृक्ष द्वार पर
कल्पनाओं की टहनी पर
फुदक फुदक कर
बनाते है नई रचनाये
गीत कवित्त कविताएं
कल्पनाओं की उड़ान
को देते हैं हर बार
नए पंख लगा बैठते
हर बार टहनी टहनी
मेरे नए जीवन की
हर सुबह को देते
एक सूरज नया । ............ अन्न्पूर्णा बाजपेई
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गुरु जी , आपका हार्दिक आभार । सच पूछिये तो मै अपनी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर खुद को धनी समझ लेती हूँ , क्योंकि गुरु की प्रतिक्रिया एक ऐसा धन है जो हर एक को नहीं मिलता ।
रचनाकर्म की प्रक्रिया सुन्दर ढंग से विवेचि हुई है.
शुभ-शुभ
adarniya mahima ji apka hardik abhar .
गीत कवित्त कविताएं
कल्पनाओं की उड़ान
को देते हैं हर बार
नए पंख लगा बैठते
हर बार टहनी टहनी
मेरे नए जीवन की
हर सुबह को देते
एक सूरज नया ।
आदरणीया अन्नपूर्णा जी .. बहुत ही सुंदर ..मन को मोहनेवाली अभिव्यक्ति ..बहुत -२ हार्दिक बधाई आपको
आदरणीय अरुण जी , बसंत जी आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया जी ...इतनी खुबसुरत सुन्दर रचना के लिये बधाई
आदरणीया अन्नपूर्णा जी बेहद सुन्दर भाव संजोये हैं आपने इस कविता में ह्रदय से बधाई स्वीकारें इस सुन्दर रचना पर.
आदरणीय बृजेश जी , आशीष जी , जितेंद्र जी उत्साह वर्धन हेतु आप सभी का हार्दिक आभार ।
बहुत ही सुंदर भावनाओ से ओत प्रोत पंक्तियों पर, हार्दिक बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी
वाह, शब्दों को पंछी की उपमा देकर जीवंत कर दिया है...
बढ़िया कविता आदरणीया !
हार्दिक बधाइयाँ !!!
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