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नाव है, पतवार नहीं

भाव है, पर शब्द नहीं

शब्द साधे पर,

अभिव्यक्ति का

सलीका नहीं |

छंद का ज्ञान कर,

शिल्प को साध कर

कविता गढ़ दी

बार बार पढ़कर

पाया,

कविता में वह-

मधुर तान नहीं |

तब, कविता लिखा

कागद फाड़कर,

डालता रहा-

कूड़ेदान में,

कलम हाथ में पकडे

पकड़कर माथा,

गडा दी आँखे

घूरते कागजो के-

कूड़ेदान में |

फिर आहिस्ता से

सिर उठाया-

आसमान की बुलंदी देख

होंसला बढाया,

कलम को कागज पर

नाव की तरह चलाया |

शाम ढले

कलम को घिसते

खेत होती श्याही

थकती उँगलियों देख

जैसे ही हाथ हटाया-

एक विद्वजन कवि

का सामने आया |

उसका चेहरा पढ़ा,

चेहरे को पढ़कर

कर में, कलम थामकर

लिखने का मन

फिर बनाया,

पीछे से किसी ने

पीठ थपथपाई

बोले- डटें रहो,

प्रयास आपका

रंग ला रहा है |

(मौलिक व् अप्रकाशित) 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 31, 2013 at 9:05am

आर्दिक आभार आपका आ. अन्नपूर्णा बाजपाई जी | सादर

Comment by annapurna bajpai on October 30, 2013 at 6:50pm

अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया , आ0 लड़ी वाला जी बधाई आपको । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2013 at 9:23am

रचना सुन्दर और सार्थक बता कर आपने रचना का मान बढ़ा दिया | मेरा प्रयास सार्थक हो गया | आपका हार्दिक आभार श्री सुशिल जोशी जी | सादर  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2013 at 9:20am

रचना पसंद करने के लिए आपका आभार श्री राम शिरोमणि पाठक जी एवं श्री रमेश कुमार चौहान जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 30, 2013 at 9:19am

आपको रचना रोचक लगी, मेरा प्रयास सार्थक हुआ | आपका हार्दिक आभार भाई श्री विशाल चर्चित जी  

Comment by Sushil.Joshi on October 29, 2013 at 9:32pm

बहुत सुंदर रचना है आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी.... किस कदर मन के भाव कागज़ पर उतरकर एक सुंदर रचना में परिवर्तित होते हैं, यह बखूबी बताया आपने....और सचमुच रचना वही अच्छी होती है जो अपने आप दिल से निकले..... केवल छंदों का ज्ञान होने से ही रचना लिख तो सकते हैं लेकिन उसमें वह मिठास नहीं लाई जा सकती जो दिल से स्वत: निकले शब्दों में होती है.... इस सार्थक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई.....

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 29, 2013 at 11:47am

बोले- डटें रहो,

प्रयास आपका

रंग ला रहा है |............................ बधाई आदरणीय बधाई

Comment by ram shiromani pathak on October 29, 2013 at 11:25am

आदरणीय लक्ष्मण जी  , बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति  // बहुत बहुत बधाई///सादर 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 28, 2013 at 9:47pm

आपने एक कवि द्वारा रचना लिखे जाने तक की तमाम यात्रा को अत्यन्त विस्तार एवं रोचक ढंग से बताया.....हार्दिक बधाई !!!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 28, 2013 at 7:24pm

मन के भाव अगर करीने से बांध जाए तो कविता स्वतः बन जाती है, और तब कोई विद्वजन पीठ थपथपाकर 

संबल प्रदान करता है तो आगे का मार्ग प्रशस्त हो जाता है | यही आपने भी किया है भाई श्री राजेश म्रदु जी |

आपका हार्दिक आभार 

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