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कुंडलिया छंद के भाव पसंद करने और कमियों की ओर ध्यान दिलाने के लिए हार्दिक आभार श्री सुशिल जोशी जी |
सभी सुधि पाठको का हार्दिक आभार |
सुन लेना हे तात, सुनकर मनन फिर करना//
मनन सुनकर ही करना !!
बधाई !!
बहुत ही सुंदर भावों से सुसज्जित कुंडलिया छंद बने हैं आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी.... बधाई हो..... किंतु प्रथम छंद में रोला की तृतीय पंक्ति के सम चरण में मात्रा दोष प्रतीत हो रहा है.... शायद कोई वर्ण छूट गया लगता है..... कृपया पुन: जाँच लें.....
रखना अपना ध्यान, छोड़ दे लाचारी
इसी प्रकार दूसरे छंद में भी रोला की प्रथम पंक्ति के सम चरण में मात्राओं का योग 14 हो रहा है....
सुन लेना हे तात, सुनने में नहीं बुराई,
नर नारी दोनों को अच्छी सीख दी बधाई लक्ष्मण भाई ।
आदरणीय लक्ष्मण भाई सुन्दर कुंडलियाँ के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!
हार्दिक बधाई भाई लक्ष्मण जी
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... |
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