लोहा ले तलवार से, तभी कलम की शान
जनता करती याद है, बढे कलम का मान |
बढे कलम का मान, जुल्म पर खुलकर बोले
मसी छोड़ दे छाप, न्यायिक तुला पर तोले
रही धर्म के साथ, उसी ने मन को मोहा
काँपे कभी न हाथ, झूठ से जब ले लोहा||
(मौलिक व अप्रकाशित )
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment
छंद के पदांत की त्रुटी की ओर ध्यान दिलाने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय | कुंडलिया छंद के दोहे का प्रारम्भ
करते समय ही इस बात का ध्यान नहीं रहा | संशोधित कर सुधार का प्रयास किया है | सादर
आदरणीय लक्ष्मण जी मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार! मुझे इन शब्दों का अर्थ जानना था!
अब यह कोई अन्यथा तथ्य नहीं रह गया है, आदरणीय, कि आप सराहना और बधाइयों के अधिक आग्रही हैं.
वर्ना कुण्डलिया के रोला वाले भाग का पदांत कैसे होता है यह न आपके लिए नयी बात रह गयी है, न ही रोला छंद और कुण्डलिया छंद के पुराने अभ्यासियों के लिए यह कोई यूरेका वाली बात है.
या, आप किसी विशिष्ट मान्यता को अपनाये बैठे हैं जो इन छंदों के विधान किसी और ढंग से अनुमोदित करते-करवाते हों ? ऐसा है, तो हम सभी के लिए भी जानना रोचक होगा, आदरणीय.
सादर
छंद सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार डॉ अनुराग सैनी जी, श्री रमेश कुमार चौहान जी, और श्री सुशिल जोशी जी | सादर
छंद पसंद करने हेती आपका हार्दिक आभार भाई श्री ब्रजेश नीरज जी | मैंने मसी का अर्थ श्याही (ink), धूजे का अर्थ काँपे,
और झूठ माने असत्य से लिया है | इसमें कोई विसंगति हो तो अवश्य जानकारी करावे | सादर
सुंदर कुण्डलिया छंद आदरणीय लक्ष्मण जी....
न्याय की कलम से यही मांग है । बधाई आदरणीय आपको इस कुंडली पर........
आदरणीय कलम की अपार महिमा है ! बधाई आपको
आदरणीय लाडीवाला जी बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ! आपको हार्दिक बधाई!
आपसे सादर अनुरोध है कि इन तीन शब्दों- 'मसी', 'धूजे', 'झूंठ' के अर्थ बताने का कष्ट करें!
सादर!
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