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देते है आशीष वे, सर पर रखते हाथ

मन में श्रद्धा भाव हो, तभी श्राद्ध यथार्थ |

तभी श्राद्ध यथार्थ, सभी है उनकी माया

समझों वे है साथ, मिले उनकी ही छाया

मिले सभी संस्कार संज्ञान में जो लेते

माने हम उपकार,  पूर्वज ख़ुशी ही देते |

    

(2)

देवर हो लक्ष्मण तभी, सीता दे वर माथ   

माँ का हो आशीष तो मिले जगत का साथ |

मिले जगत का साथ, साथ में प्रभु की छाया

भ्राता से हो प्यार, सुखो का घर में साया

घर का हो कल्याण दिखता न कोई तेवर

पाकर सुन्दर सीख बने जो काबिल देवर |

(मौलिक व् अप्रकाशित)

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 29, 2013 at 9:24am

कुंडलिया छंद पसंद कर सराहने के लिए आपका आभार श्री राम भाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 29, 2013 at 9:23am

कुंडलिया छंद के भाव पसंद करने के लिए हार्दिक अभार डॉ प्राची जी | सादर 

तभी श्राद्ध यथार्थ की जगह -तब हो श्राद्ध यथार्थ किया जा सकता है ?

Comment by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 5:10pm

बहुत ही सुन्दर कुण्डलिया छंद आदरणीय //हार्दिक  बधाई आपको //सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 9:30pm

सुन्दर भाव आ० लक्ष्मण जी 

तभी श्राद्ध यथार्थ |.................मात्रा पुनः जांचें 

प्रवाह पर भी ध्यान दें 

सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 26, 2013 at 3:24pm

हार्दिक आभार आपका श्री राजेश जी | सादर 

Comment by राजेश 'मृदु' on September 26, 2013 at 3:15pm

जय हो आदरणीय, बहुत बढि़या प्रस्‍तुति, सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 26, 2013 at 11:22am

छंद पसंद कर सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय श्री विजय निकोरे जी, एवं श्री रमेश कुमार चौहान जी | सादर 

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 25, 2013 at 9:45pm

इस सुंदर भाव एवं सुंदर छंद के लिये हार्दिक बधाई आदरणीय ।

Comment by vijay nikore on September 25, 2013 at 7:34pm

इस सुन्दर कुंडलिया छंद के लिए बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 25, 2013 at 4:23pm

आपका हार्दिक आभार श्री अरुण शर्मा "अनंत" जी | त्रुटी की ओर ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद 

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"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
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"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
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"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
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"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
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अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, हार्दिक धन्यवाद  आभार आपका "
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"हार्दिक धन्यवाद  आभार आदरणीय अशोक भाईजी, "
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"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभाजी "
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"आदरणीय अखिलेश जी बहुत सुन्दर भाव..हार्दिक बधाई इस सृजन पर"
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"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
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