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राहुल और निधि कब एक दूसरे के हो गये पता ही नही चला | दोनों ने साथ साथ जीने मरने की कसमें खायीं थीं । निधि के घरवाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे, किन्तु निधि की जिद के आगे उनकी एक न चली और अंतत: उन्हें शादी के लिए अपनी रज़ामंदी देनी ही पड़ी।

निधि उस दिन ऑफिस से जल्दी ही निकल गई, वह राहुल को यह खुशखबरी देना चाहती थी । निधि दरवाजे की घंटी बजाने ही वाली थी कि राहुल के कमरे से आ रही तेज आवाज़ों को सुन रुक गई,
"अरे राहुल, शादी की मिठाई कब खिला रहा है ?"
"अबे साले, शादी के लिए लड़की भी तो चाहिए, तू दारू पी दिमाग़ मत चाट"

"पर राहुल, तू तो निधि से प्यार करता है ना, फिर शादी भी तो उसी से ...."

"मैं और निधि से शादी करूँगा ? तू पगला गया है क्या ? उस लड़की का क्या भरोसा जो शादी से पहले ही मेरे साथ ....."

आगे के शब्द सहस्र बिच्छुओं के डंक के बराबर थे |

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 2:10am

गहरी सीख 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 3, 2013 at 4:44pm

आधुनिकता की अंधी दौड़ में भाग रही लड़कियों के लिए एक बड़ा सबक है ये लघु कथा ,बहुत बढ़िया सन्देशपरक प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई |

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on November 2, 2013 at 6:20am

सन्देशपरक .... आदरणीय !!!

Comment by Usha Taneja on November 1, 2013 at 8:56pm
पुरुष-मानसिकता का डंक निधि के साथ साथ हर अति आधुनिक लड़की को समय रहते चुभना चाहिए ।
बहुत बढ़िया संदेश!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 1, 2013 at 8:52pm

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर साहब | 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 1, 2013 at 8:51pm

प्रिय अनुज अरुन, यदि देखी जाय तो आज महानगरों में दोनो स्थितियाँ देखने को मिल रही हैं, लड़के और लड़कियों मे एक होड़ सी लगी है कि किसकी लिस्ट मे संख्या अधिक है, इस अंध दौड़ में कौन कब ठोकर खा जाय कहना मुश्किल है, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार | 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 1, 2013 at 8:45pm

आदरणीय जितेंद्र जी, प्यार करना ग़लत नही है,ग़लत है प्यार की आड़ में समर्पण करना और चेहरे पर चेहरे लगाए हुए भेड़ियों को न पहचान सर्वस्व न्योछावर कर देना, लघुकथा आप तक पहुँच सकी लेखन कर्म सार्थक हुआ,बहुत बहुत आभार |  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 1, 2013 at 8:34pm

आदरणीय डाक्टर आशुतोष जी, यदि यह लघुकथा किसी एक को भी सतर्क कर सकी तो लघुकथा सार्थक हो जाएगी, आपको यह प्रस्तुति पसंद आई और आपने उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया करी इसके लिए मैं बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हूँ | 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 1, 2013 at 7:52pm

आदरणीय सुशिल भाई साहब, आपकी टिप्पनी बहुत ही सारगर्भित लगी, इस लघुकथा का शीर्षक पहली बार में हिट किया और वाही रख दिया, आपको लघुकथा पसंद आयी रचना सफल हुई, बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 1, 2013 at 7:49pm

आदरणीया गीतिका जी, आप तक लघुकथा अपने मूलस्वरूप में पहुँच सकी लेखन कर्म सार्थक हुआ,बहुत बहुत आभार । 

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