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शातिर (अतुकांत) ---गणेश जी बागी

बादलों से ढँका
नीला नही काला आकाश,
उचाईयों को मापता
उन्मुक्त पंछी,
चट्टान की ओट मे
फाँसने को आतुर बहेलिया,
आहा ! इधर ही आ रहा मूर्ख
फँसेगा, ज़रूर फँसेगा,
ओह ! बच गया,
शायद भांप गया । 

पुनः पेड़ की ओट मे,
वाह ! इधर ही आ रहा दुष्ट
आएगा इस बार
इस तीर की ज़द मे,
उफ्फ ! बच गया
बड़ा चालाक है
खैर, कब तक । 

हरे काले सफेद

रंगो से पुता
आवरण युक्त चेहरा
झाड़ियों के मध्य समाहित
दम साधे बहेलिया,
सनसनाता तीर
आ गिरा ज़मीन पर
शातिर कही का !
बादलों से मुक्त हुआ आकाश
और साथ मे
आवरण विहीन चेहरा भी |

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट =>लघुकथा : गिफ्ट

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 2:13am

क्या खूब चित्र खींचा है. आपकी लघुकथा की तरह ही प्रभावकारी. लग रहा है लघुकथा और कविता की मिलन स्थली है यह रचना.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 22, 2013 at 9:56am

रचना पसंद करने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 19, 2013 at 5:45pm

आदरणीया गीतिका वेदिका जी, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती प्रतीत हुई, बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 19, 2013 at 5:44pm

आदरणीया आपकी टिप्पणी बहुत ही सबल प्रदान करती है, बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 19, 2013 at 5:43pm

सराहना हेतु आभार आदरणीय श्याम बिहारी वर्मा जी । 

Comment by Neeraj Neer on October 19, 2013 at 8:27am

बहुत ही उत्तम भाव . कविता के माध्यम मानो एक चित्र खिच दिया हो . पबेहतरीन प्रस्तुतिकरण ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 18, 2013 at 11:53pm

आँखों के सम्मुख एक चित्र सा साकार करती  हुई ये रचना,कमजोर पर निर्ममता की जीत कहाँ  नहीं? कितने प्यारे होते हैं प्राण किन्तु हर कोशिश के बावजूद काल से बच नहीं पाते ,काल चाहे बहेलिये के रूप में ही आये...

बहुत बहुत बधाई आदरणीय गणेश जी   

Comment by वेदिका on October 18, 2013 at 5:05pm

बहुत दिन बाद आपकी कविता पढ़ने को मिली आदरणीय, अच्छा प्रतीत हुआ!  

हरे काले सफेद रंगो से पुता
आवरण युक्त चेहरा
झाड़ियों के मध्य समाहित
दम साधे बहेलिया, .....मुखौटा लगाए शिकार करते हुये शिकारी से साक्षात्कार करवा दिया आपने तो|

बधाई !!

Comment by coontee mukerji on October 18, 2013 at 12:38pm

अगर देखें तो यह रचना दोहरा अर्थ रखता है.बागी जी, आपकी लघुकथा की तरह मुखर.

सादर

कुंती.

Comment by Shyam Narain Verma on October 18, 2013 at 11:33am
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... 

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