राहुल और निधि कब एक दूसरे के हो गये पता ही नही चला | दोनों ने साथ साथ जीने मरने की कसमें खायीं थीं । निधि के घरवाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे, किन्तु निधि की जिद के आगे उनकी एक न चली और अंतत: उन्हें शादी के लिए अपनी रज़ामंदी देनी ही पड़ी।
निधि उस दिन ऑफिस से जल्दी ही निकल गई, वह राहुल को यह खुशखबरी देना चाहती थी । निधि दरवाजे की घंटी बजाने ही वाली थी कि राहुल के कमरे से आ रही तेज आवाज़ों को सुन रुक गई,
"अरे राहुल, शादी की मिठाई कब खिला रहा है ?"
"अबे साले, शादी के लिए लड़की भी तो चाहिए, तू दारू पी दिमाग़ मत चाट"
"मैं और निधि से शादी करूँगा ? तू पगला गया है क्या ? उस लड़की का क्या भरोसा जो शादी से पहले ही मेरे साथ ....."
आगे के शब्द सहस्र बिच्छुओं के डंक के बराबर थे |
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट =>शातिर (अतुकांत)
Comment
गहरी सीख
आधुनिकता की अंधी दौड़ में भाग रही लड़कियों के लिए एक बड़ा सबक है ये लघु कथा ,बहुत बढ़िया सन्देशपरक प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई |
सन्देशपरक .... आदरणीय !!!
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर साहब |
प्रिय अनुज अरुन, यदि देखी जाय तो आज महानगरों में दोनो स्थितियाँ देखने को मिल रही हैं, लड़के और लड़कियों मे एक होड़ सी लगी है कि किसकी लिस्ट मे संख्या अधिक है, इस अंध दौड़ में कौन कब ठोकर खा जाय कहना मुश्किल है, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार |
आदरणीय जितेंद्र जी, प्यार करना ग़लत नही है,ग़लत है प्यार की आड़ में समर्पण करना और चेहरे पर चेहरे लगाए हुए भेड़ियों को न पहचान सर्वस्व न्योछावर कर देना, लघुकथा आप तक पहुँच सकी लेखन कर्म सार्थक हुआ,बहुत बहुत आभार |
आदरणीय डाक्टर आशुतोष जी, यदि यह लघुकथा किसी एक को भी सतर्क कर सकी तो लघुकथा सार्थक हो जाएगी, आपको यह प्रस्तुति पसंद आई और आपने उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया करी इसके लिए मैं बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हूँ |
आदरणीय सुशिल भाई साहब, आपकी टिप्पनी बहुत ही सारगर्भित लगी, इस लघुकथा का शीर्षक पहली बार में हिट किया और वाही रख दिया, आपको लघुकथा पसंद आयी रचना सफल हुई, बहुत बहुत आभार ।
आदरणीया गीतिका जी, आप तक लघुकथा अपने मूलस्वरूप में पहुँच सकी लेखन कर्म सार्थक हुआ,बहुत बहुत आभार ।
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