For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : मतिमूढ़ (गणेश जी बागी)

संता लगभग एक साल बाद अपने गाँव लौट रहा था । बसंता इतना खुश था कि जो भी वेंडर ट्रेन मे आता वो कुछ न कुछ खरीद लेता, माला, गुड़िया, चूड़ी, बिंदी, सोनपापड़ी और भी बहुत कुछ । पैसे देने के लिए हर बार वह नोटों से भरा पर्स खोल लेता । अगल बगल के यात्रियों ने उसे डांटा भी, मगर भोला भला बसंता हँस कर बात टाल जाता ।    

आख़िर वही हुआ जिसका डर था, चलती ट्रेन में किसी ने उसका रुपयों से भरा पर्स निकाल लिया । बसंता ज़ोर ज़ोर से रोने लगा, तब सहयात्रिओं की आवाज़ें हर तरफ गूंजने लगीं । 

"देखा, इसीलिए मैं तुम्हें डाँट रहा था, और खोलो सब के सामने पर्स, करवा लिया न हजारों रुपयों का नुक्सान !
"मैं रुपयों के लिए नहीं रो रहा हूँ बाबू जी, पर्स में मेरी स्वर्गवासी माँ की फोटो थी, मेरे पास उसकी और कोई फ़ोटो भी नहीं है" 
तभी किसी की आवाज़ आई "मतिमूढ़ कही का ....."

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : डंक

Views: 1251

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 2:09am

भोला भला बसंता.... भोला भाला बसंता

ऐसी मतिमूढ़ता  सबको मिले 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2013 at 11:00am

प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2013 at 10:59am

प्रिय अतेन्द्र जी, आपकी टिप्प्णी इस लघुकथा को विस्तारित करती है, इस प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2013 at 10:58am

//क्या कीमत है भावनाओं की ? बस मतिमूढ़ता ही बचाये रखती है सम्बन्ध//
आदरणीय सौरभ भइया, आपके कहे से बिलकुल सहमत हूँ, बहुत बहुत आभार आपका । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2013 at 10:23am

आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाई साहब, जब आप जैसे लेखकों से उत्साहवर्धन टिप्प्णियां मिलती हैं तो ह्रदय प्रफुल्लित हो जाता है, बहुत बहुत आभार, स्नेह बना रहे । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2013 at 10:21am

आदरणीय अभिनव अरुण जी, उत्साहवर्धन करती टिप्प्णी हेतु दिल से धन्यवाद प्रेषित करता हूँ । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2013 at 10:20am

आदरणीय राजेश कुमारी जी, आपको लघुकथा पसंद आयी, लेखन कर्म सार्थक हुआ,आभार आपका । 

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 5:33am

आज जब पैसों की अहमियत रिश्तों पर भारी पड़ती दिख रही है, ऐसे में इस प्रकार की कथाएँ निश्चित रूप से हमें रिश्तों की अहमियतता को बताने में सक्षम हैं...... सुंदर एवं सार्थक इस लघु कथा हेतु बधाई आ0 गणेश भाई....

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2013 at 2:52pm

Not matuimudh Basanta is an innocent misfortunist ie abodh abhagga

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on November 6, 2013 at 7:24pm

प्रणाम सर जी ...वैसे देखा जय तो इस युग में माँ की अहमियत कुछ कम सी हो गई है पैसे और पत्नी के आगे ऐसे में कोई माँ कि फोटो पर्स में रक्खे या सीने से लगाए आचम्भित करता जरुर है .....अगर इक्कीसवीं सदी का समाज पैसे को तथा उन्नीसवी सदी का समाज माँ को अहमियत देता है तो कौन सा समाज अच्छा है ....उन्नीसवीं शताब्दी जैसी सोच रखने वाला  भोला भाला हो सकता है पर मतिमूढ़ कैसे हो सकता है ..वह तो आज के लोग जो खुद को चतुर समझते हैं कहीं उनसे अधिक बुद्धिमान है ...चतुर सुजानों की नज़र में  वो मतिमूढ़ ही कहलायेगा जिनके लिए पैसा ही सब कुछ  है ...अच्छी लघु कथा के लिए बधाई आपको सर जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
9 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
10 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
12 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"अति सुंदर ग़ज़ल हुई है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service