For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता (बेटी के दिल से)

खड़ी-खड़ी देखती हूँ जब मैं पिता की ओर
मन हुलसाती बाबा हांथ न बढ़ाते हैं

भैया को मंगाया गया चन्दन का पालना
मेरे लिए बांस का खटोला बिछाते हैं

भैया के खेलने को मोटर कार और बाजा
मेरे लिए खेलने को लाले रोज पड़ते हैं

भैया के खाने को दूध और बताशा खीर
मेरे लिए रोटी दाल बहुत बताते हैं

भैया के पढ़ने को विदेश पठाया गया
मेरे लिए अक्षर ज्ञान बहुत बताते हैं

भैया को बना के दिये महल-दुमहला खूब
मेरे लिए छोटी सी पालकी मंगाते हैं

खड़ी-खड़ी देखती हूँ जब मैं प्रभु की ओर
मन मुस्काते प्रभु पीर नहीं हरते हैं


कल्पना मिश्रा बाजपेई
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 489

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kalpna mishra bajpai on February 23, 2014 at 10:11am

आ0 सौरभ पाण्डेय जी, आप के मार्ग दर्शन के लिए शुक्रिया । आप के सुझाव हमारे लिए सदैव प्रेणना श्रोत रहेंगे ।

Comment by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 2:53pm

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया हार्दिक बधाई आपको//////////   सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 7, 2014 at 5:34pm

आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई...आदरणीय सौरभ सर के मशविरे पर जरूर अमल करें ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 7, 2014 at 2:15pm

दिल को छूने वाले भाव हैं आपकी प्रस्तुति में ,बदलाव के लिए हमे ही  निरंतर प्रयास रत रहना है.शुभकामनायें  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2014 at 12:00pm

आपकी व्यक्तिगत और पारिवारिक पीड़ा को आपका पाठक समझ सकता है, आदरणीया. मरा मन वस्तुतः बहुत दुःखी है आपकी दशा को जान-सुन कर.

किन्तु, आग्रह है कि आप अपनी भावनाओं को कविता के रूप में प्रस्तुत करें. सारी द्विपदियाँ कविता नहीं होतीं. आप इस मंच पर पोस्ट हुई भिन्न-भिन्न स्तरों की रचनाएँ खूब पढ़ें और उन पर अपनी सार्थक बातें/समझ लिखें.

इस प्रयास से आके लेखन में गुणात्मक सुधार होगा.

शुभेच्छाएँ

 

Comment by coontee mukerji on February 7, 2014 at 12:02am

खड़ी-खड़ी देखती हूँ जब मैं प्रभु की ओर
मन मुस्काते प्रभु पीर नहीं हरते हैं.....भैया लोग सही सलामत रहे...यह भी तो हम बहन चाहती है.....प्रभू सब की पीर हरे.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2014 at 8:17am

आदरणीया , बहुत सुन्दर रचना की है , आपको बधाइयाँ ॥ पर अब सच मे आशातीत बदलाव हो चुके है ॥  

Comment by annapurna bajpai on February 6, 2014 at 1:28am

कल्पना जी भाव तो खूब चुने आपने , बेटी की व्यथा कह डाली । आज का समय काफी परिवर्तित हो गया है आगे भी होगा , ऐसी आशा है । लिखती रहिए । 

Comment by Meena Pathak on February 5, 2014 at 2:31pm

फिर  भी ............मै पापा की लाडली ...... मै पापा की पापा मेरे 


Comment by Shyam Narain Verma on February 5, 2014 at 9:58am
बहुत सुन्दर रचना , बधाई आप को | सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service