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बात ही बात है

हर जगह बात है

हवा थक चुकी है

बात ही बात से,

बूँदों को बार बरसना पड रहा है

ताकि उसकी तरफ भी कोई देखे,

लेकिन लोगों को बात से फुरसत नहीं है।

बात को बात से लडाया जा रहा है

बात किसी को नहीं देख पा रही है

कौन उसका है,और कौन पराया है

बात लोगों से नाराज है।

बात ही बात से।

लोगों के दिमाग़ पर छाई है बात

बात लोगों से तंग है

लोग बातों से तंग हैं

ये वर्तमान में जीने के ढंग हैं।

बात बेमतलब हँस लेती है

तो ठहाका नाराज हो जाता है

बात छहाके को मतलब समझाती है

लेकिन ठहाका हर बार लटक जाता है

चिपक जाता है बात ही बात से।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 23, 2014 at 3:23am

समसामयिक रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय.

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 10, 2014 at 12:16am

राजेश कुमारी जी , आप का धन्यवाद, आप ने बात ही बात को सराहा । शुक्रिया

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 10, 2014 at 12:15am

मीना पाठक जी, आपकी बधाईयाँ मिली आपका सादर धन्यवाद

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 10, 2014 at 12:14am

गिरिराज भंडारी, जी आपको नमस्कार, आपने हौंसला बढाया धन्यवाद

Comment by सूबे सिंह सुजान on March 10, 2014 at 12:13am

बिद्यानाथ  सारथी जी, आपका धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 5, 2014 at 10:31am

बात ही बात है बात ही बात है ....बात शब्द को केन्द्रित करके लिखी रचना पढ़ कर अच्छी लगी बधाई सूबे सिंह जी 

Comment by Meena Pathak on March 4, 2014 at 4:47pm
Waah !! Kyaa Baat hai ,, Badhai.. Saadar

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 4, 2014 at 11:24am

आदरणीय सूबे सिंह जी , बहुत सुन्दर रचना के लिये आपकओ बधाइयाँ ।

Comment by Saarthi Baidyanath on March 4, 2014 at 10:56am

हवा थक चुकी है

बात ही बात से,....क्या बात है मान्यवर ! खूब ! एक बढ़िया रचना के लिए बधाई !

कृपया ध्यान दे...

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