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ग़ज़ल: वो चिड़ियों जैसे पर लाया

बस्ते में रोटी भर लाया

बच्चा भी ये क्या घर लाया 


होठों पे खुशियाँ धर लाया
वो बोले किसकी हर लाया

सोने चांदी सब नें मांगे
वो चिड़ियों जैसे पर लाया

इक तूफानी झोंका आया
जाने किसका छप्पर लाया

दुत्कारा लोगों नें उसको
जो धरती पे अम्बर लाया

काम के इंसा मैंने मांगे
वो बस्ती से शायर लाया

भुवन निस्तेज
(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2014 at 2:53pm

आ. भुवन भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 4, 2014 at 2:40pm

एक बात स्पष्ट करूँ आदरणीय भुवनजी, मैं क्यों कर की बात कर रहा हूँ. न कि क्या कर की. शायद पिछली बार क्या कर को क्यों कर पढ़ गया होऊँ.  हो सकता है. फिरभी, क्या कर लाया बहुत संप्रेषणीय वाक्यांश नहीं है.

या, चूँकि मैं मतले का अर्थ स्पष्ट नहीं समझ पा रहा हूँ, आप कृपया मुझे वहाँ पहुँचायें जहाँ इस मतले का अर्थ है. शायद फिर मु्झे अर्थ सुलभ हो पायेगा.

सादर

Comment by भुवन निस्तेज on April 4, 2014 at 2:01pm

आदरणीय Saurabh Pandey साहब स्नेह हेतु आभार.

मतले का उला ''घर से वो ये क्या कर लाया
बस्ते में रोटी भर लाया'' है. क्या कर के  प्रयोग से अस्पष्टता है या क्यों कर के प्रयोग से या दोनों के कृपया मार्गदर्शन प्रदान करें. मैं मतले पर यथोचित श्रम करूँगा.

मकते पर मैं पुनर्विचार कर रहा हूँ ...

आभार...

Comment by Arun Sri on April 3, 2014 at 12:02pm

//घर से वो ये क्या कर लाया
बस्ते में रोटी भर लाया//

सोने चांदी सब नें मांगे
वो //चिड़ियों जैसे पर// लाया

काम के इंसा मैंने मांगे
वो बस्ती से //शायर// लाया

इक तूफानी झोंका //आया//
जाने किसका छप्पर लाया

अच्छा प्रयास हुआ है गज़ल पर !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 11:47am

सोने चांदी सब नें मांगे
वो चिड़ियों जैसे पर लाया

काम के इंसा मैंने मांगे
वो बस्ती से शायर लाया.. .. वाह वाह !

इन दो शेरों के लिए बहुत बहुत बधाई.

वैसे, एक बात कहूँ, क्यों कर का सही अर्थ है कैसे. अब मतले को इस अर्थ के साथ देखें. शायद वह अस्पष्ट लगने लगे.

इसी तरह आखिरी शेर भी मेरे लिए अस्पष्ट रहा. इसके उला सानी में बह्र की नहीं मायने की अस्पष्टता लगी है. 

इक तूफ़ानी वाले शेर में ऐब है.

सादर

Comment by भुवन निस्तेज on March 30, 2014 at 5:18pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra  साहब, आप को कोटि नमन, कृपया इस्लाह देते रहें … 

Comment by भुवन निस्तेज on March 30, 2014 at 5:17pm

आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त'  जी मैंने तक्तीअ तो २२२२ २२२२ से कि है शायद कहीं भटक गयी हो, कृपया सलाह दे… 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 28, 2014 at 5:44pm

भुवन जी 

सोने चांदी सब नें मांगे

वो चिड़ियों जैसे पर लाया

  इस शे र के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 28, 2014 at 10:58am

कृपया ग़ज़ल की बह्र से अवगत करायें

कृपया ध्यान दे...

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