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ऐसी ही होती है - माँ (तीन पंक्तियाँ)

मेरी मृत्यु नहीं हुई थी,

इसलिए बिछड़ी नहीं

हमेशा के लिए |

उसने मुझे रहने को

दे दिया बड़ा सा वृद्धाश्रम

कई लोगों के साथ में

कई सालों के लिए

घर से बस थोड़ी सी दूर|

जो रहा था

बस नौ महीने

अकेला

मेरी छोटी सी कोख में |

** मौलिक और अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 28, 2014 at 1:00pm

आदरणीय डॉ. प्राची सिंह जी

आपका हृदय से आभार|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 19, 2014 at 6:47pm

अपनी माँ को बेमौत मार देना... क्या यही नहीं होता ?

सुन्दर मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति 

हार्दिक बधाई 

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 15, 2014 at 1:29pm

आपका कोटिशः धन्यवाद आदरणीय वंदना जी तथा आदरणीय लक्ष्मण जी|

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 14, 2014 at 9:30am

भाई चन्द्रश जी , प्रशंसा के लिए शब्दों का चयन कठिन है , बस कोटि कोटि बधाई .

Comment by Vindu Babu on April 12, 2014 at 7:45pm

ओह!

इतना 

मार्मिक व्यंग आदरणीय!

कोख में अकेला रखा तो वृद्धाश्रम में कई लोगों के साथ रहने का अवसर दिया ...अहसान किया।

हे प्रभु! क्या होगा इस समाज का।

हार्दिक शुभकानाएं आदरणीय चन्द्रेश जी,आपकी रचना ने भावुक कर दिया।

सादर

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 12, 2014 at 11:18am

आप सभी आदरणीय जनों को इस रचना और मुझे आशीर्वाद देकर कृतार्थ करने के लिए हृदय से नमन करता हूँ| 

Comment by कल्पना रामानी on April 11, 2014 at 7:47pm

उच्चकोटि  की  भावपूर्ण मार्मिक रचना के लिए आपको बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 11, 2014 at 4:02pm

बहुत ही मार्मिक है

Comment by Meena Pathak on April 11, 2014 at 2:07pm

उफ्फ्फ .... बहुत मार्मिक 

Comment by Shyam Narain Verma on April 11, 2014 at 10:59am
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई 

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