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ग़ज़ल '' चाँद भी अब साँवला हो जायेगा '' - ( गिरिराज़ भंडारी )

2122     2122     2122       212

क्या मुआफी मांग इंसा यूँ भला हो जायेगा

एक अच्छाई से दानव,  देवता हो जायेगा ?

 

खूब घेरी चाँद को , बेशक हज़ारों बदलियाँ

क्या लगा ये ? चाँद भी अब साँवला हो जायेगा

 

जिस तरह से धूप अब अठखेलियाँ करने लगी

सच अगर तू देख लेगा , बावला हो जायेगा

 

थोड़ा डर भी है सताता इस जमे विश्वास को

पर कभी लगता, चमन फिर से हरा जो जायेगा

 

हौसलों को तुम अमल में भी कभी आने तो दो

सिर्फ़ बातें ही करोगे , बोथरा हो जायेगा

 

आज फूलों को मसलता घूमता है, कल वही

आपकी खामोशियों से जाने क्या हो जायेगा

 

अर्श पे बैठे हुवों को जानना होगा ज़रूर

आज जो कुछ वो करेंगे , कायदा हो जायेगा

 

चंद दाने छीट दो तुम पंछियों के वास्ते

वरना गुम्बद कुछ दिनों में बेसदा हो जायेगा 

 

चाँद की इन कोशिशों से आप रंजीदा न हों

रोज़ थोड़ा बढ़ रहा है तो बड़ा हो जायेगा

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2014 at 4:57pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपकी खुशी मे ही मेरी सफलता छिपी है , बहुत अच्छा लगा , आपकी प्रतिक्रिया ने हार्दिक खुशी दी है , आपका तहे दिल से आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2014 at 4:54pm

आदरणीय नादिर खान भाई , ज़र्रा नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2014 at 2:18am

जय हो.. क्या बात है.. आदरणीय गिरिराह भाई आपने खुश कर दिया.

सादर

Comment by नादिर ख़ान on April 17, 2014 at 11:38pm

चंद दाने छीट दो तुम पंछियों के वास्ते

वरना गुम्बद कुछ दिनों में बेसदा हो जायेगा .आदरणीय गिरिराज जी सुंदर विचारों से सजी  शानदार गज़ल के लिए बधाई ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2014 at 6:32pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आपकी सराहना हमेशा मेरा उत्साह वर्धन करती है , आपका हार्दिक आभार ! ऐसे ही स्नेह बनाये रखें !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2014 at 6:30pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:41pm

बहुत खूब गिरिराज जी, अच्छे अश’आर हुए हैं। दिली दाद कुबूल करें।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 16, 2014 at 11:39pm

बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय गिरिराज जी

अर्श पे बैठे हुवों को जानना होगा ज़रूर

आज जो कुछ वो करेंगे , कायदा हो जायेगा............दिली बधाई स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2014 at 5:17pm

आदरणीय मुकेश भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2014 at 5:15pm

आदरणीय इमरान भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ! आ. इमरान भाई घेरी कह के है घेरने की क्रिया का पूरा हो चुकी कहना चाहता हूँ , धेरे मे भविष्य मे घेरे  जाने की इच्छा -भाव का भी बोध रहा है ! फिर भी अगर घेरी कहना व्याकरण सम्मत नही है तो मै घेरे कर लूंगा !!

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