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हैप्पी इंडिपेंडेंस डे , आज़ादी की वर्षगांठ मुबारक | आतिशबाजियां छुड़ाते और एक दूसरे को मिठाई खिलाते हुए लोग चिल्ला रहे थे और एक दूसरे को इंडिपेंडेंस डे की शुभकामना भी दे रहे थे |
और सामने की मिठाई की दुकान पर छोटू दौड़ दौड़ कर लोगों को पानी दे रहा था और टेबल साफ़ कर रहा था |


( मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by विनय कुमार on July 16, 2014 at 4:12pm

आभार सौरभ पाण्डेयजी..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 15, 2014 at 2:35am

आपकी लघुकथा से गुजरना हुआ, आदरणीय..
विषय अच्छा उठाया है आपने कथा का माहौल नहीं बन पाया. आपकी अन्य लघुकथाओं का इंतज़ार रहेगा.

Comment by विनय कुमार on July 7, 2014 at 9:25pm

आभार गिरिराजजी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 8:10pm

आदरणीय , लघुकथा के शिल्प के विषय मे मै नही जानता , बाल श्रमिक का विषय अच्छा उठाया है , बधाई ॥

Comment by विनय कुमार on July 7, 2014 at 6:40pm

आभार अरुणजी एवम रवि प्रभाकरजी..

Comment by Ravi Prabhakar on July 7, 2014 at 6:32pm

प्रिय मित्रवर,
आपका प्रयास सराहनीय है। मैनें आपकी अन्य लघुकथाएं ‘थप्पड़’ और ‘पढाई लिखाई’ भी पढ़ी है।
उनके मुकाबले मुझे यह एक ‘रूटीन’ लघुकथा लगी। विषय और प्रस्तुति में कोई नयापन नहीं लगा।
अन्यथा ना लें.... प्रयास जारी रखें। सादर ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 3:19pm

आदरणीय आपकी लघुकथा का विषय चिंतनीय अवश्य है किन्तु क्या ऐसा इंडिपेंडेंस डे के दिन होता है.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 7, 2014 at 2:22pm

आदरणीय विनय जी ..हो गया वतन आजाद मेरा पर लोग अभी भी मुक्त नहीं सोते थे भूखे ही तब भी सोते हैं भूखे ही अब भी ..आपकी रचना चिंतन के liyए विवश करती है ..इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by विनय कुमार on July 6, 2014 at 9:11pm

आभार सुभ्रांशुजी , आपसे सहमत लेकिन बड़े शहरों एवम महानगरों में अब ये सब आम हो गया है..

Comment by Shubhranshu Pandey on July 6, 2014 at 4:01pm

आदरणीय विनय जी, सुन्दर कथा है. 

एक आजादी जिसकी चाह में बच्चा काम किये जा रहा है.. 

लेकिन अब भारत में ऎसी आजादी की वर्षगांठ नहीं मनती है जिसमें रात के ११ बजे तक दुकाने खुली रह्ती हो.अमुमन इस दिन दुकाने बन्द रह्ती हैं. ..अलबत्ते नये साल के आने के पहले  रात को दुकाने जरुर खुली रहती हैं...जब शोर कानों को चीरता हुआ दिमाग पर चढता है.

सादर.

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