For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुपरिष्कृत आस्था .... (विजय निकोर)

सुपरिष्कृत आस्था

 

भर्रायी आवाज़
महीने हो गए जाड़े को गए

क्यूँ इतनी ठिठुरन है आज

आस्था में, सचेतन में मेरे

आंतरिक शोर के ताल के छोर से छोर तक

ठेलती रही है आस्था मुझको, मैं इसको

पर आज बुखार में ओढ़ने को इस पर

पास मेरे कोई कम्बल नहीं है

नुकीले अनुभवों से छिदराई

परिस्थितियों से पल-पल फटी शाल के सिवा

 

स्वजनों के बिछोह के आरोहावरोह

धूल भरे विश्वासों के संघर्ष

महानदी में आस्था पहले कभी ऐसी

घबराई तो न थी

हुआ है कुछ, या आज कुछ होने को है

नियति को भी शायद यह पता नहीं है

 

प्रचलित प्रथाओं के दावानल

पराभूत हुए मेरे सभी प्रत्यय

ठिठुरती आस्था, चिंतित चेतन

कह दूँ इनसे कि पास मेरे अब

कोई संबल नहीं है, संघर्ष हैं बहुत

स्वावलंबन नहीं है?

पर मैं इतना निराश क्यूँ हूँ?

पास अभी भी सिधांत तो हैं

सत्यनिष्ठा है, मन:शक्ति है

विवेक है, चरित्र है

क्यूँ न घेर लूँ मैं इनसे

परिकंपित चेतन को, ठिठुरती आस्था को

करूँ अनुभव आत्मा की अरुणाभ शोभा को

              -------------

                                                       

 -- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

                                     

Views: 801

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 12, 2014 at 6:39am

//सुन्दर भावपूर्ण कविता ........//

मैं आपका आभारी हूँ, आदरणीया सविता जी। आशा है आप से प्रोत्साहन मिलता रहेगा। सादर।

Comment by vijay nikore on August 12, 2014 at 6:37am

//निराशा की गर्त से उबरने की राह को प्रकाशित करती हुई आपकी इस अनुपम रचना को नमन.

ऐसी रचनाएं हम पाठकों को नव-ऊर्जा देती हैं//

यह रचना आपको अच्छी लगी, यह अत्यँत सुखद एहसास है। इसके भाव मेरे लिए भी बहुत मान्य रखते हैं।

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया विन्दु जी।

Comment by vijay nikore on August 11, 2014 at 3:08pm

//उस सोच को शब्दों में बांधना ....बहुत लाजवाब है ...आपको पढ़ना अपने अंतर्मन को पढ़ने जैसा है ... इस रचना ने भी मुझे ....मुझसे मिला दिया ....आपकी लेखनी कमाल है ... बहुत बहुत नमन ... //

आपकी कवित्तमय प्रीतिकर प्रतिक्रिया एवं सराहना के लिए हृदयतल से आभारी हूँ, आदरणीया प्रियंका जी।

Comment by vijay nikore on August 11, 2014 at 1:40pm

//आपकी प्रस्तुत रचना जिस व्यवस्थित ढंग से मानवसुलभ विभ्रम को शब्दबद्ध करती है वह आपकी रचनाधर्मिता के प्रति सादर भाव जगाती है//

ऐसी प्रतिक्रिया मेरे लिए आशीर्वाद है। आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ जी।

Comment by vijay nikore on August 11, 2014 at 1:34pm

//जब तलक है साँस तब तलक है आस। सुन्दर भावपूर्ण कविता//

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया मंजरी जी।

Comment by vijay nikore on August 3, 2014 at 3:47pm

//बहुत सुन्दर भाव .......आदरणीय लाजवाब कविता के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गिरिराज जी।

Comment by vijay nikore on August 3, 2014 at 3:45pm

//एक कटु सत्य जो सभी के जीवन में कहीं न कहीं, कभी न कभी मुखरित होता है, भावनाओं का स्वरूप् दे शब्दों में पिरोने के लिए हार्दिक बधाई//

रचना को इस प्रकार सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by vijay nikore on August 3, 2014 at 3:41pm

//कविता का एक एक शब्द झकझोरता हुआ अंतरात्मा को छू जाता है, अनंत आशाएँ जगाती हुई सुंदर भावपूर्ण रचना //

आपने इस सुन्दर भावना से इस रचना को मान दिया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी।

आशा है ऐसे ही प्रेरणा देती रहेंगी।

Comment by vijay nikore on August 3, 2014 at 3:37pm

//किस किस पंक्ति पर  बिछूं I  .....

 और फिर देदीप्यमान अन्तश्चेतना--------- आह सुन्दरते ---- अमरते------अभिनवे //

आदरणीय गोपाल नारायन जी, आपसे इस प्रकार मान मिलना मेरे प्रोत्साहन के लिए बहुत मान्य रखता है।

आपका हार्दिक आभार।

Comment by savitamishra on August 1, 2014 at 12:14pm

सुन्दर भावपूर्ण कविता ........आदरणीय चाचाजी सादर नमस्ते

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service