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लो अब मैं सुधर गया
उनके दिल से उतर गया
याद न आया उनको मैं भी
मेरी कुरबत भी न भा पाई
उनकी सुधियों से गुजर गया
इक पतझड़ सा बिखर गया
मलूल हुआ आनन्द
सोचकर कि वो
इजहारे-वक्त पर मुकर गया
उसूल देखो यार मेरे
साए में जिनके 
इक खौफ़ से उबर गया
लो अब मैं सुधर गया...
माना कि पतझड़ सा बिखर गया
पीली पाती बना वृक्ष की
टूट कर डाली से देखो
गोद में धरणी के मचल गया
नव झोके और बयारों में
कोने-कोने में उछल गया
कितने दिलों में उतर गया
लो अब मैं सुधर गया

.
@anand

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by रमेश कुमार चौहान on October 3, 2014 at 8:11pm

अच्छा प्रयास हे सादर बधाई


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Comment by गिरिराज भंडारी on October 2, 2014 at 9:36pm

सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय बधाइयाँ स्वीकार करें |

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 4:59pm

बहुत बढ़िया आ. आनंद जी बधाई आपको 

Comment by Pawan Kumar on September 30, 2014 at 12:02pm

सुन्दर प्रस्तुति, सादर बधाई!

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