एक छतरी है जो याद मुझको बहुत आती है|
चुनरी पालने की याद मुझको रोज आती है |।
सुधियों से परिपूर्ण,सुध बचपन की आती है |
अंगने के झूले की,याद उस उपवन की आती है|।
सायबान की छाया में ..पालने की गोदी में.......
हरकतों पर मेरी दूर खड़ी माँ खूब मुस्कुराती है।।
चुटकियों से माँ, मेरे चेहरे पर सरगम सजाती है |
डूबकर मेरी किलकारियों में ,हर गम भूल जाती है|।
माँ मुझे पालना झुलाती है ,कभी गोदी में हिलाती है |
हवा में उछाल कर मुझको,.. दुनिया रोज दिखाती है |।
मिटाने डर की लकीरों को , कई तरकीब लाती है |
आँचल में छिपा कर वो ,हमें जन्नत दिखाती है |।
प्यारी थप्पी लगाती है ,कभी लोरी सुनाती है |
प्रतिक्रिया देख कर मेरी,माँ माथा चूम जाती है|।
रीति की गहन सीमा में,वो घूँघट में मुस्काती है|
मेरे गिरने के हर अंदेशे मे,...देहरी लाँघ जाती है|।
चुन्नी को छतरी बनाती है,कभी बिछावन बनाती है|
मेरी खुशियों में वो,.....न जाने क्या-क्या बनाती है|।
खुशहाली की चाहत में,माँ मन्दिर -मन्दिर जाती है|
नजर के टोटकों में ,...वो हमें पल्लू में छिपाती है|।
सहरा-सहरा मोती बीने,...सेहरा रोज सजाती है|
फ़रमाइश में इक राधा की,कई तस्वीरें भिजवाती है|।
माँ अभी भी मेरे घर आने की, हर खबरों में फूल जाती है|
पलकें बिछाकर राहों में अपना खाना भूल जाती है |।
उम्र की इस सरहद पर माँ, ममता का पालना झुलाती है|
दूर रह कर भी ,..दुआओं की चूनर उढ़ाती है|।
एक छतरी है जो याद.
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@anand "मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
माँ के लिए बहुत सुन्दर रचना ...............दिल से बधाई स्वीकारें आदरणीय
माँ की याद में बहुत सुन्दर,उत्कृष्ट भावों से आप्लावित आपकी रचना बहुत अच्छी लगी |हार्दिक बधाई आपको आनंद जी.
आनंद मूर्ति जी
माँ तो एक अहसास का नाम है i
आप की कविता अहसास से भरी है i
माँ यानि मेरा सम्पूर्ण |
सुन्दर प्रयास
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