For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घनघोर घटायें छायीं हैं, देखो न इनमे खो जाना

घनघोर घटायें छायीं हैं, देखो न इनमे खो जाना ,

बड़ी तेज चली पुरवाई है,देखो न इनमे खो जाना !!

 

पिया ,  क्यूँ रूठे हो मुझसे,

मुझे आज है तुमको मानना,

पिया  निकल पड़ी हूँ घर से,

अपने दफ्तर का पता बताना !!

 

जिद करती हो जैसे बच्चे,

जाओ मुझे नहीं  घर आना,

थोडा दूर  रहो अब मुझसे ,

मेरी कीमत का पता लगाना !!

 

माना भूल हो गयी  मुझसे,

अब माफ़ भी कर दो जाना,

कितना प्रेम करती हूँ तुमसे,

मुझे आज तुम्हे  है बताना ,

व्यथित हृदय की पीड़ा को ,

समझो सुन लो मेरे प्रियवर,

अश्रुओं की इन धाराओं को ,

कुछ तो कर लो अनुभवकर !! 

 

कुछ समझो मेरी प्राणप्रिये,

जो चाहता हूँ मैं समझाना,

यह जग नहीं उतना अच्छा,

जितना तुमने है समझा, जितना तुमने है जाना !!

 

गर होता न प्रेम हृदय में ,

क्यों होती अधीर इतने में,

तरस जाते  हैं मेरे नयना,

कुछ पल के ही वियोग में,

कैसे बताऊँ अनमोल हो तुम,

मेरे हिय आत्म पति सजना ,

न कहना कभी दूर रहो मुझसे,

वर्ना फिर भर आएंगे मेरे नयना,

 

कुछ समझो मेरी प्राणप्रिये,

जो चाहता हूँ मैं समझाना,

यह जग नहीं उतना अच्छा,

जितना तुमने है समझा, जितना तुमने है जाना !!

 

अच्छा निकल गया दफ्तर से,

कुछ काम मुझे था निपटाना,

तुम जल्दी से घर पहुँचो,

बड़ा खराब है ये ज़माना !!

 

घनघोर घटायें छायीं हैं, देखो न इनमे खो जाना,

बड़ी तेज चली पुरवाई है,देखो न इनमे खो जाना !!

 

मैं पहुँच रही हूँ घर पे,

तुम जल्दी से घर आना,

बड़ी तेज चली पुरवाई है,

तेरी बाँहों में है समाना !!

 

अच्छा फ़ोन रखो जल्दी से,

अच्छा सा बना लो खाना,

मैं प्यार करता हूँ तुमसे,

इसलिए पड़ा इतना समझाना,

 

दुनिया मैं लोग है अच्छे,

उससे भी घातक है दरिन्दे,

तुम्हे बनना पड़ेगा सयाना,

कब तक रोकूंगा मैं दीवाना !!

 

कब तक रोकूंगा मैं दीवाना,

कब तक रोकूंगा मैं दीवाना !!

 

घनघोर घटायें छायीं हैं, देखो न इनमे खो जाना,

बड़ी तेज चली पुरवाई है,देखो न इनमे खो जाना !!

 

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 841

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on February 19, 2015 at 9:17am

सोमेश भाई ,रचना पर आपकी उपस्थिति  और आपके मार्गदर्शन  के लिए हार्दिक आभार,रचना वाकई बड़ी हो गयी है देखता हूँ ,इसमें क्या और बेहतर हो सकता है , पुन: धन्यवाद !

Comment by Hari Prakash Dubey on February 19, 2015 at 9:14am

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया साहब ,आपकी उत्साहवर्धक सराहना के  लिए,एवं मार्गदर्शन के लिए  आपका बहुत-बहुत आभार ,सादर

 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 19, 2015 at 9:10am

आदरणीया परी जी, रचना पर आपकी उपस्थिति  और आपके मार्गदर्शन  के लिए हार्दिक आभार ! सादर

Comment by somesh kumar on February 18, 2015 at 7:46pm

पति-पत्नी के दैनिक सम्वाद को कविता में गढ़ने का प्रयास किया है आपने |रचना कुछ ज़्यादा बड़ी है और टाइपिंग त्रुटी भी रह गई है |वैसे भाव सरल और स्पष्ट है |बाकी मित्र भी बहुत कुछ कह चुके हैं |प्रयास पर बधाई |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 18, 2015 at 6:05pm

सुंदर भावों की प्रस्तुति आदरणीय हरी प्रकाश जी. आदरणीय डा.गोपाल जी व् आदरणीय मिथिलेश जी के सुझावों से सहमती रखता हूँ. मैं भी सीख रहा हूँ, अन्यथा न ले. पद्य का लघु होना और गद्य का दीर्घ, ऐसा प्रयास रहे. यह  सुधिजनो का मार्गदर्शन है.

Comment by Pari M Shlok on February 18, 2015 at 9:53am
मिथिलेश वामनकर जी की बात से सहमति रखते हैं .. हम आपको भटकना नहीं चाहते कृपया हमारी बात को अन्यथा न लें
Comment by Hari Prakash Dubey on February 18, 2015 at 9:47am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर , प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on February 18, 2015 at 9:47am

आदरणीय समर कबीर जी ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on February 18, 2015 at 9:46am

आदरणीय मोहन सेठी जी, ह्रदय से आभार आपका ,सादर !

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 18, 2015 at 9:42am
आकर्षक , बधाई, आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
3 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया ऋचा जी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
4 hours ago
Chetan Prakash commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । "छिपी है ज़िन्दगी मैं मौत हरदम वो छू लेगी अगर (…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service