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सामान्य ज्ञान का प्रश्न---डॉo विजय शंकर

व्यवस्था का मान करें ,
उस से ज्यादा जो व्यवस्था में हैं ,
उनका सम्मान करें।
वे कौन हैं , कहाँ से आये हैं ,
पूछ कर न अपना
अपमान करें।
जो व्यवस्था में हैं ,
वे माननीय , आदरणीय हैं ,
पूज्यनीय , वन्दनीय हैं ,
ओजस्वी ,प्रकाशमान
देवतास्वरूप हैं ,
उनकें ज्ञान पर , उनकें
सामान्य ज्ञान पर प्रश्न न करें ,
वे स्वयं सामान्य ज्ञान का प्रश्न हैं,
बड़ी परीक्षाओं में सामान्य ज्ञान
के प्रश्न पत्रों में पूछे जाते हैं ,
उन पर जो सही उत्तर दे दें ,
वे मेधावी ज्ञानी कहलाते हैं ,
परिक्षा में उच्च अंकों से पास हो जाते हैं ,
अच्छी सरकारी नौकरी पा जाते हैं ,
उसी व्यवस्था और उन्हीं व्यवस्थाकारों
के आगे सर नवाते हैं ,
उन्हीं का हुकुम बजाते हैं |

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

Views: 659

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 10:52am
आपको रचना का कटाक्ष पसंद आया , आभार, आदरणीय सुश्री माला झा जी, सादर ,
Comment by Mala Jha on May 2, 2015 at 8:49am
बहुत ही सटीक कटाक्ष!सादर बधाई।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 5:10am
.
आदरणीय श्री सुनील जी ,आपके अनुमोदन के लिए आपका आभार है, आपकी बधाइयों के लिए भी ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 5:06am
सही कहा आपने , यहाँ तो व्यवस्था देने वाले ही व्यवस्था को " ठेंगा " दिखाते हैं ! फिर भी सभी कुछ सामान्य है , व्यवस्थित ,ठीक-ठाक .............
आदरणीय राज कुमार आहूजा जी ,आपको कविता अच्छी लगी , आपका आभार है, आपकी सद्भभावनाओं के लिए भी ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 5:00am
आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी ,आपको व्यंग अच्छा लगा , आपका आभार है, आपकी सद्भभावनाओं के लिए भी ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 4:57am
आदरणीय सुश्री महिमा जी ,आपको व्यंग अच्छा लगा , आपका आभार है, आपकी बधाइयों के लिए भी ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 4:55am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,आपको कविता अच्छी लगी, आपने सबसे प्रमुख पंक्ति उदृहत् की है , आपका आभार है, आपकी बधाइयों के लिए भी ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 2, 2015 at 4:49am
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार, आपको कविता अच्छी लगी, प्रसन्नता हुयी, आपका आभार है, आपकी मुबारकबाद के लिए भी ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।
Comment by shree suneel on May 2, 2015 at 12:42am
आदरणीय विजय शंकर सर, क्या सही चित्र उकेरा है आपने!
/उनकें ज्ञान पर , उनकें
सामान्य ज्ञान पर प्रश्न न करें ,
वे स्वयं सामान्य ज्ञान का प्रश्न हैं,/
समाज आख़िरी पंक्तियों को जीने के लिए विवश है.
Comment by rajkumarahuja on May 1, 2015 at 9:55pm

यहाँ तो व्यवस्था देने वाले ही व्यवस्था को " ठेंगा  " दिखाते हैं  ! फिर भी सभी कुछ सामान्य है , व्यवस्थित ,ठीक-ठाक .............

 बहुत सुन्दर प्रस्तुती आदरणीय डा.विजय शंकर जी , सादर ..!

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