For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : जहां था अंधेरा घना जिंदगी का

122 122 122 122

जहॉं था अंधेरा घना जि़दगी का

वहीं से मिला रास्‍ता रोशनी का

 

सलीबें न बदली न बदले मसीहा

वही हाल है आज तक हर सदी का

 

सितारे फलक से न आये उतर कर

हुआ कब ख़सारा किसी आशिकी का

 

न तुम रो सके औ हमारी अना को

सहारा मिला आरज़ी ही खुशी का

समन्‍दर सुख़न के तलाशे बहुत से

ख़जा़ना मिला है तभी शाइरी का

 

पिया है वही जाम जो दे ख़ुदाई

न अहसां उठाया न बदला सलीका

 

यही चार दिन है यहीं जी सको तो

न अफसोस होगा कभी जि़ंदगी का

मौलिक एवं अप्रकाश्‍ाित

Views: 703

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:55pm

आरणीय गिरिराज जी ग़ज़ल पर आपकी शिरकत और शेर पर इस्‍लाह से उत्‍हसाहित है हम आपका सुझाव पूरी तरह से सही है । किन्‍तु क्षमा सहित निवेदन करना चाहते है कि, हम जो विचार लेकर चल रहे है वह बदल जाएगा । आपके सुझाव अनुसार यही चार दिन जी ले तो कभी जिंदगी का अफसोस नहीं होगा । और हम ये कहना चाह रहे है कि इन चार दिन को यहीं इसी वर्तमान मे जी लिया जाए इस के आगे किसी स्‍वर्ग के प्रलोभन और नर्क के कथित भय से मुक्‍त हो कर जी लिया जाए । इस दृष्टि से भी कही जा सकती है बात । आशा है आप हमारी बात को समझ रहे है । आपकी विश्‍लेषणात्‍मक टिप्‍पणी से सदैव ही सोच को आयाम मिलता है और वह प्रतीक्षित रहती है । आशा है इसी प्रकार अनुग्रह बनाये रखेगें ।

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:46pm

आदरणीय डॉ . गोपाल नारायण जी आपका आर्शीवाद मिल गया लिखना सार्थक हो गया बहुत बहुत आभार आपका

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:45pm

आरणीय विजय जी आपको शेर पसंद आया लिखना सार्थक हुआ आभार आपका

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:45pm

आरणीय नरेन्द्र सिंह जी ग़जल पर आपकी उपस्थिति से खुशी हुई है धन्‍यवाद

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:44pm

आदरणीय दिनेश जी आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन के प्रति आश्‍वस्‍त हुए हम आभार

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:44pm

आदरणीय दिनेश जी आपको ग़ज़ल पसंद आई लेखन के प्रति आश्‍वस्‍त हुए हम आभार

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 2:43pm

आदरणीय मिथिलेश जी कई दिनों बाद लौटे है इस लिये विलंब से आपकी प्रति‍क्रिया का आभार दे पा रहे है । संभालते संभालते गलती हो ही गई :-) क्षमा । /// हुआ कब ख़सारा किसी आशिकी का ///से प्रतिस्‍थापित कर लिया है मूल आलेख को । आपकी हौसला आफजाई का शुक्रिया । सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 22, 2015 at 4:31pm

समन्‍दर सुख़न के तलाशे बहुत से

ख़जा़ना मिला है तभी शाइरी का-------------कमाल है .

Comment by vijay nikore on August 20, 2015 at 3:56pm

सभी शेर अच्छे लगे, विशेषकर निम्न...

//सलीबें न बदली न बदले मसीहा

वही हाल है आज तक हर सदी का\\

हार्दिक बधाई।

Comment by narendrasinh chauhan on August 20, 2015 at 12:35pm

जहॉं था अंधेरा घना जि़दगी का वहीं से मिला रास्‍ता रोशनी का 

सलीबें न बदली न बदले मसीहा वही हाल है आज तक हर सदी का

लाजवाब ग़ज़ल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
Sunday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service