2122 2122 2122 212
जब तलक हो तुम सलामत जिंदगी मेरी रहे
जिस खुशी में तुम रहो खुश वो खुशी मेरी रहे
फेर ले रुख चॉंद अपना मै अभी मसरूफ हूँ
वस्ल की सारी लताफ़त दिलकशी मेरी रहे
खूबसूरत रात है ये खूबसूरत चॉंदनी
चॉंद बेशक हो तुम्हारा रोशनी मेरी रहे
आशिकी भी है कयामत आबशारे इख्तिलाफ़
राहते जां है वही जो नाखुशी मेरी रहे
मैं गलत हूँ या सही ये बात सारी दरगुज़र
चाहती है वो मुझे ये सादगी, मेरी रहे
कह गई थी जो मुझे, किस हाल में होगी वफ़ा
ता कयामत दोस्ती ये, आपकी मेरी रहे
सोचता हूँ मैं जला डालूं खुतूते आशिकी
हश्र में क्यूँ साथ मेरे बेकसी मेरी रहे
आपकी है ये नवाजिश आपका लुत्फे करम
खुश बयानी की कशिश ले शाइरी मेरी रहे
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय रवि जी इस शेर में 'मेरी रहे' रदीफ़ के साथ 'नाखुशी' काफिया जम नहीं पा रहा है. आशिकी माना कि कयामत और आबशारे इख्तिलाफ़ है लेकिन यही तो मेरी राहते-जां है अब इस पर जमाने की नाखुशी हो तो हो. नाखुशी हमेशा तेरी या उनकी या जमाने की रहे लेकिन आशिकी मेरी रहे .....
आशिकी माना कयामत आबशारे इख्तिलाफ़
राहते जां है मिरी ताजिंदगी मेरी रहे
आरणीय मिथिलेश जी
आभार आपका ग़ज़ल पर शिरकत के लिये क्षमा पुन: त्रुटि हो गई इसका खेद है । इसको मूल लेख मे सुधार रहे है
जिस शेर पर चर्चा हुई है उसके समाधान के लिये भी कुछ कहें तो प्रसन्नता होगी ।
आदरणीय रवि जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है.
हश्र में ना साथ मेरे बेकसी मेरी रहे
यदि ना के प्रयोग से बचा जा सके तो बेहतर है क्योंकि उसका वज्न 1 होता ही है बाकि गुनिजन कह ही चुके है. सादर
आरणीय गिरिराज जी और आदरणीया राजेश जी
आपके ग़ज़ल पर आने और इस्लाह देने के लिये शुक्रिया
शायद अधिक शेर कहने के मोह में ये शेर बस हो गया सा लगता है किन्तु आपकी बात से नये आयाम खुले है हमने भी इस दिशा में सोचा, आप सत्य कह रहे है । इस शेर में मेरी रहे कामना रूप मे न हो कर अपने होने के रूप को व्यक्त कर रहा है जिससे रदीफ में फर्क पड़ रहा है । कहना यही चाहा है कि जो मेरी प्रसन्नता का कारण है वही उदासी की सबब भी है ये विरोधाभास का भाव अभी सही तरह से अभिव्यक्त नहीं हो पा रहा है ।
ग़जल में शेर को हटाया भी जा सकता है किन्तु ये सरल रास्ता होगा हम प्रयास करेंगे और आप की तरह और भी सिद्धहस्त हस्ताक्षर इस पर अपनी राय देंगे तो रास्ता आसान हो जाएगा । आपका बहुत बहुत आभार अनुग्रह बनाये रखें । प्रतीक्षा में
आदरणीय लक्ष्मण जी आभार आपका
आ0 रवि भाई, हार्दिक बधाई .
बहुत अच्छी ,शानदार ग़ज़ल कही है आपने सभी शेर उम्दा व् स्पष्ट भाव वाले हैं बस इसी शेर पर मैं भी अटकी हूँ जिसपर आ० गिरिराज जी कह चुके हैं इसका भाव स्पष्ट करें तो संशय दूर हो |आपको बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर रवि शुक्ल जी
आदरनीय रवि भाई , लाजवाब गज़ल कही है आपने , क्या बात है , हरेक शेर के लिये दिली मुबारक बाद आपको ।
बस इस एक शे र के विषय मे और सोच लीजियेगा -
आशिकी भी है कयामत आबशारे इख्तिलाफ़
राहते जां है वही जो नाखुशी मेरी रहे
इस शेर मेरी रहे मुझे कामना के रूप मे नही लग रहा है , जैसा कि बाक़ी शे र मे है , कहीं ऐसा न हो कि
राहते जां है वही जो नाखुशी मेरी रही , व्याकरण सम्मत हो और रदीफ गडबड- हो जाये या
राहते जाँ हो वही जो नाखुशी मेरी रहे , करना पड़े , तो भाव मे अंतर आ जाये , सोच लीजियेगा , मै निश्चित तौर पे कुछ कहने मे असमर्थ हूँ ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online