For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : घर चलो अब वक्‍त है आराम का

रंग गहरा हो गया है शाम का ।

घर चलो अब वक्‍त है आराम का ।।

आज उनको याद मेरी आ गई ।

कल तलक मैं था नहीं कुछ काम का ।।

घर चलो दहलीज़ होगी मुन्तजि़र ।

फि़क्र में गुज़रे न वक्फा़ शाम का ।।

खो न जाना इन नज़ारों में कहीं ।              

ये फुसूं है चर्खे  नीली फ़ाम का ।।

जब पड़ा था काम उनको याद था ।

अब पडा़ हूं जब नहीं  कुछ काम का ।।

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 553

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 12, 2015 at 7:56pm

इतनी अच्छी अच्छी गजल पढने को मिल रही है ...मन बाग़ बाग़ हो जाता है मैं पूरे मन से प्रयास नहीं करता इसलिए नहीं लिख पाता हूँ ...शायद कभी लिख पाऊँ! बस आपको हार्दिक बधाई!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 11:16am

आ0 भाई रवि जी,  इस बेहतरीन ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई .

Comment by Ravi Shukla on August 11, 2015 at 5:55pm

आदरणीय गिरिराज जी बहुत खूब

इस्‍लाह का शुक्रिया इसी लिये तो रचना यहां रखते है कि जो कुछ हमसे छूट गया है

उसे आप विद्वतजन बतायें ।

आभार अादरणीय । मूल आलेख में हमने सुधार कर लिया है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2015 at 2:43pm

घर चलो दहलीज़ होगी मुन्तजि़र ।

फि़क्र में गुज़रे न वक्फा़ शाम का ।।   बहुत खूब , आदरनीय रवि भाई , बहुत अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

अंतिम शे र मे  सानी मिसरा मे  गो  के बदले मे जब कैसा रहेगा ?

Comment by Pawan Kumar on August 11, 2015 at 2:41pm

आज उनको याद मेरी आ गई ।

कल तलक मैं था नहीं कुछ काम का ।।

आजकल तो इसका चलन हो गया है
आदरणीय, सुन्दर गजल पर हार्दिक बधाई!

Comment by Ravi Shukla on August 11, 2015 at 1:58pm

आरणीय मिथिलेश जी , आदरणीय हर्ष जी और आदरणीया तनुजा जी आप सब की ग़ज़ल पर शिर्कत से हौसला बढ़ा है । अनुग्रह बनाये रखे । आभार ।

Comment by Tanuja Upreti on August 11, 2015 at 1:07pm

जब पड़ा था काम उनको याद था ।

अब पडा़ हूं गो नहीं  कुछ काम का ।

वाह इन पंक्तियों का क्या कहना रवि जी 

Comment by Harash Mahajan on August 11, 2015 at 8:53am
आ0 रवि शुक्ला जी इस बेहतरीन ग़ज़ल पर दिली दाद । साभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 10, 2015 at 11:06pm

आदरणीय रवि जी शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service