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रोटी कपडा दयार थे सदमे
मुफलिसी मे हज़ार थे सदमे

एक मुद्दत से साथ चलते थे
जान के दावेदार थे सदमे

खूब रोया था कहके चारागर
क्यों मेरा रोजगार थे सदमे

शाइरी भी फंसी सियासत मे
पहले ही बेशुमार थे सदमे

सारी बातें गलत तबीबों की
तेरे गम का गुबार थे सदमे

उनकी आँखों से नूर बहता है
हर तरफ मेरी हार थे सदमे

आज कह डाले तेरी महफ़िल है
मुझपे तेरा उधार थे सदमे

इश्क वालो के बीच कहता हु
रौशनी मे दरार थे सदमे

हाय ! अहसास क्या कहे यारो
शख्सियत का दूसार थे सदमे

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 374

Comment

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Comment by Meenakshi Sukumaran on September 29, 2015 at 1:39pm

bahoot khoob

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 29, 2015 at 12:03pm
खूबसूरत ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करेँ।

कृपया ध्यान दे...

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