For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल_मनोज अहसास

1222 1222 1222 1222


मेरी आँखों से ऎसे दर्द का रिश्ता निकल आया
जिसे रक्खा निग़ाहों में वही कतरा निकल आया

वो जिसको सारी दुनिया की खुदा ने बख्श दी दौलत
उसी के घर मेरा खोया हुआ कांसा निकल आया

न मेरे हिस्से में तेरी झलक थी इक नज़र को भी
बहुत परदे हटाये फिर भी एक पर्दा निकल आया

मैं दसरथ मांझी का किस्सा भी इस मिसरे में कहता हूँ
किसी की जिद के आगे नूर का रस्ता निकल आया

जो उसने कह दिया गर वाह बिना समझे ग़ज़ल मेरी
मेरे सिर भी कई अल्फ़ाज़ का खर्चा निकल आया

है कुछ तो काफ़िया बढ़िया ज़रा मुझमे भी सुस्ती है
बड़ी मुश्किल है के याद का सदमा निकल आया

ज़रा सी देर मे सारा फ़साना लिख गए कातिल
बनाई बरसो की बुनियाद पे झगड़ा निकल आया

मै तेरे इश्क़ की बातों को कैसे हू-ब-हू लिख दूँ
कहीं कतरा निकल आया कहीं दरिया निकल आया

बड़ी मुश्किल में हूँ दिलबर अलग अंदाज़ से तेरे
यूँ कैसे झील सी आँखों में ये सहरा निकल आया

ग़ज़ल में मुझको अपनी बात कहने का सलीका दे
ज़रा से इल्म से "अहसास" पर खतरा निकल आया


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 488

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on October 15, 2015 at 2:17pm
आप सभी को सादर प्रणाम
ग़ज़ल में शिरकत के लिए और सुझावों के लिए आभार
सुधारने का प्रयास करता हूँ
सादर
Comment by Ravi Shukla on October 15, 2015 at 12:55pm

आदरणीय मनोज जी अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाई स्‍वीकार करें ।

न मेरे हिस्से में तेरी झलक थी इक नज़र को भी
बहुत परदे हटाये फिर भी एक पर्दा निकल आया  इस में एक को इक करने से प्रवाह सही हो सकता है

जो उसने कह दिया गर वाह बिना समझे ग़ज़ल मेरी
मेरे सिर भी कई अल्फ़ाज़ का खर्चा निकल आया  पहले मिसरे को किस तरह पढते है इस पर   वाह और बिना  निर्भर करेगा  नहीं तो वाह के ह को पूरा समय दें तो बिन करने से रुक्‍न सही हो सकता है

ज़रा सी देर मे सारा फ़साना लिख गए कातिल
बनाई बरसो की बुनियाद पे झगड़ा निकल आया  बहुत खूब  कई किस्‍से इससे निकलते है अच्‍छा चित्रण है बधाई ।

बड़ी मुश्किल में हूँ दिलबर अलग अंदाज़ से तेरे
यूँ कैसे झील सी आँखों में ये सहरा निकल आया   .....  वाह वाह क्‍या बात है मनोज जी क्‍या विरोधाभास लेकर आये है

ग़ज़ल में मुझको अपनी बात कहने का सलीका दे
ज़रा से इल्म से "अहसास" पर खतरा निकल आया .....अजी कहते रहिये शेर किसी तरह का खतरा नहीं है । दिली दाद कुबूल करिये ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 14, 2015 at 9:25pm

आदरणीय मनोज भाई , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ ॥

जो उसने कह/ दिया गर वा/ ह बिना समझे / ग़ज़ल मेरी  ---  मिसरा तीसरे रुक्न से बेबहर है

और -
है कुछ तो काफ़िया बढ़िया ज़रा मुझमे भी सुस्ती है
बड़ी मुश्किल है के याद का सदमा निकल आया      --- इस शेर मे आप क्या हनना चाहतें है , मै नही समझ सका , हो सकता है मेरी समझ ही कम हो , फिर भी एक बार सोच लीजियेगा ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 14, 2015 at 4:02pm

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय मनोज भाई 

शेर दर शेर दाद हाज़िर है 

Comment by मनोज अहसास on October 13, 2015 at 10:00pm
बहुत आभार आदरणीय मेहता जी
सादर
Comment by जयनित कुमार मेहता on October 13, 2015 at 8:38pm
वाह, सुन्दर अश'आर हुए हैं..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service