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अ ' से अँधेरा होता है बेशक
'आ' कर दें ,पीछे हाथ लगाकर
बन जाये "आ' से आन्दोलन
देखें तब कैसे कोई आकर
छीने इन बच्चों का यूं हक़
आपकी रचना का भाव मेरे दिल के करीब हैं ,, बधाई आपको इस रचना के लिए आदरणीय मनोज जी
आदरणीय मनोज भाई,
आपने बहुत अच्छा विषय उठाया. प्लॉट बहुत बढ़िया बनाया. कविता का मर्म आँखों को नम भी कर गया क्योकि इस सत्य का अनुभव सरकारी नौकरी करते हुए कभी न कभी होता ही है. गाँव के पाठशालाओं का आलम कई कई बार देखा भी है. इस प्रस्तुति में आपके अनुभव के प्रभाव ने इसे जीवंत भी कर दिया. यहाँ तक सब बहुत बढ़िया ......
लेकिन शिल्प स्तर पर आपसे अधिक सुगठित रचना की आशा रहती है. आपकी इसी शैली की बहुत अच्छी रचनाएँ पढ़ चुका हूँ. इतने बढ़िया प्लॉट और मर्म को एक बढ़िया ढंग से शाब्दिक किये जाने की अपेक्षा ने मुझे संक्षिप्त टीप के लिए बाध्य किया.
आप बहुत ज्यादा जल्दबाजी में रचनाएँ पोस्ट कर रहे हैं. इस रचना को थोड़ा और समय दीजिये. अभी ये अच्छी रचना है लेकिन ये ओबीओ की श्रेष्ट रचनाओं में सम्मिलित होने की योग्यता रखती है. भाव स्तर पर आपकी रचना सीधे दिल में उतरी है मगर आप जानते है मंच शिल्प के प्रति भी उतना ही सजग है.
कभी कभी कोई अच्छी चीज जाया होते दिखती है तो दुःख होता है. बस यही बात है संक्षिप्त टीप का कारण. आपने प्रश्न पूछा इसलिए आज कह रहा हूँ अन्यथा आगे पुनः आता इस रचना पर.
आशा है मैं अपनी बात स्पष्ट कर सका हूँ. सादर
लाजव़ाब भाई मनोज जी! शिल्पस्तर का मुझे ज्ञान नही पर आपने कविता में भारत की शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई जिस तरह से रक्खी है..उसके लिए अशेष बधाईयां!!
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