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आदरणीय मनोज भाई , गज़ल बहुत सुन्दर कही है , दिली बधाइयाँ आपको ।
नीचे के दो मिसरे की तक्तीअ एक बार और कर लीजियेगा --
लपटों मे घिर न जाये कहीं ठुकराया फूल वो
बिगड़े मेरे नसीबो का इल्ज़ाम लिख दिया
सज़दो का मेरा इश्क़ के ईनाम लिख दिया
साकी ने मेरे आंसुओं को जाम लिख दिया
सारे जहां की दौलते मुठ्ठी में आ गयीं
बेटी ने मेरे हाथ पर जब नाम लिख दिया
वाह वाह और वाह आदरणीय जी … बहुत ही सुंदर और दिलकश भावों की इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
आदरणीय मनोज जी । वाह वाह क्या बात है बड़ी सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने
सारे जहां की दौलते मुठ्ठी में आ गयीं
बेटी ने मेरे हाथ पर जब नाम लिख दिया
इस शेर ने तो दिल बाग बाग कर दिया जनाब दिली दाद कुबूल करें
मतलअ में सजदों को बहुवचन कर रहे है तो, सजदो को मेरे इश्क का ईनाम लिख दिया भी कह सकते है । प्रवाह और निखर सकता है ।
शेर दर शेर बधाईयां कुबूल करें ।
आदरणीय मनोज भाई जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.....लगता है ग़ज़ल जल्दबाज़ी में पोस्ट हुई है. एक बार इन मिसरों को अवश्य देख लीजियेगा -
सज़दो का मेरा इश्क़ के ईनाम लिख दिया
उसने उदासियां का मेरी दाम लिख दिया
घबरा के चारागर ने भी आराम लिख दिय
लपटों मे घिर न जाये कहीं ठुकराया फूल वो
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