For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : जब कभी तनहाइयों का

2122      2122     2122    212

जब कभी तनहाइयों का आईना मुझको मिला ।

अपने अन्दर आदमी इक दूसरा मुझको मिला ।।

 

हमसुखन वो हमनफ़स वो हमसफ़र हमजाद भी ।

जान लूँ इस चाह में कब आशना मुझको मिला ।।

 

वक्ते रुखसत हाल उसका भी यही था दोस्तों ।

अक्स मेरा चश्मे नम पर कांपता मुझको मिला ।।

 

मंज़िलों से  और बेहतर हसरते मंज़िल लगे ।

लिख सकूं तफसील जिसकी रास्ता मुझको मिला ।।

 

जो बजाते खुद हुआ इल्मो अदब का आफ़ताब ।

रौज़नो से कैद की वो झांकता मुझको मिला ।।

 

मौलिक एवं अप्राशित

Views: 606

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on November 3, 2015 at 6:38pm

अति सुन्दर . बढ़िया ग़ज़ल .मुबारकबाद !!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 24, 2015 at 3:13pm
हमसुखन वो हमनफ़स वो हमसफ़र हमजाद भी ।
जान लूँ इस चाह में कब आशना मुझको मिला ?

बहुत खूब!आ.रवि जी बधाई।
Comment by Shyam Narain Verma on September 23, 2015 at 4:29pm
बहुत सुन्दर गजल।  ढेरों दाद कुबूल करें। सादर
Comment by Samar kabeer on September 22, 2015 at 11:44pm
जनाब रवि शुक्ल जी,आदाब,बहुत ही मुरस्सा ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।


"जो बजाते खुद हुआ इल्मो अदब का आफ़ताब
रौज़नो से कैद की वो झांकता मुझको मिला"

इस शैर में कुछ कहना चाहूँगा:-

ऊला मिसरे में 'हुवा' शब्द ठीक नहीं लग रहा है,इस शैर के भाव मेरे नज़दीक ये हैं कि ,जो बज़ात-ए-ख़ुद इल्म-ओ-अदब का आफ़ताब है,वो क़ैद ख़ाने के रौशन दानों से झाँक रहा है,देख लीजियेगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 5:46pm

आदरणीय रवि जी, यकीनन यह भूलवश हुआ है. बाकी निर्णय आदरणीय प्रधान संपादक महोदय ही लेंगे. आपकी सदाशयता के लिए आभार.

Comment by Ravi Shukla on September 22, 2015 at 5:43pm

आदरणीय मिथिलेश जी

सर्व प्रथम जो भूल हमसे हई उसके लिये खेद है स्‍मरण नही रहा कि आरंभिक दौर में कही गई गज़ल पहले हम आरकुट पर दे चुके है पुरानी गजलों को जिन्‍हे कभी गज़ल कह  लेते थे उन्‍हें अब सीखे हुए ज्ञान से सुधार कर देखने ( ताकबुले रदीफ दोष के कारण बदनना ) और आप लोगो से साझा करने के उत्‍साह मे ही ये त्रुटि हुई है । पुन: इसके लिये खेद व्‍यक्‍त करते हुए निवेदन है कि इसे तुरंत प्रभाव से हटा दिया जाए । इससे अधिक इस पर हम और कुछ कहने की स्थिति में नहीं है । सादर ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 5:39pm

आदरणीय रवि जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. बधाई. लेकिन ये पुरानी ग़ज़ल है जिसमें आपने केवल एक मिसरे-"मंज़िलों से और बेहतर हासिले मंज़िल लगा ' को बदल कर "मंज़िलों से और बेहतर हसरते मंज़िल लगे " किया है. ये ग़ज़ल ऑरकुट के 'Hindi Sahitya Sabha' फोरम में 2010 में ही आप प्रकाशित कर चुके है. अतः यह ग़ज़ल अप्रकाशित नहीं है.


http://orkut.google.com/c119731-tb9f61279f5608a63.html

नियम २(च) के अनुसार लेखक केवल वही रचना प्रकाशन हेतु पोस्ट करें जो कि पूर्णतया अप्रकाशित हो | किसी भी ऐसी रचना को स्थान नहीं दिया जायेगा जो किसी वेबसाईट, ब्लॉग अथवा किसी सोशल नेटवर्किंग साईट पर पूर्व मे प्रकाशित हो चुकी हो | रचनाकार यदि कोई रचना अपनी पूर्व प्रकाशित पुस्तक में से पोस्ट करे तो कृपया उसका ब्यौरा अवश्य दें | ओ बी ओ आयोजनों में प्रस्तुत रचना भी प्रकाशित मानी जाएगी और पुनः उसका प्रकाशन ओ बी ओ पर नहीं किया जायेगा (स.०१.०४.१२)

यह नियम स्पष्ट रूप से कहता है कि, ओ बी ओ पर वही रचना पोस्ट करे जो वेब पर किसी माध्यम से पोस्ट (प्रकाशित) न हो । यानि, आपके निजी ब्लॉग्स, फेसबुक, ऑर्कुट सहित किसी सोशल नेटवर्किंग साइट अथवा वेबसाइट सभी इसकी ज़द में आते हैं । केवल प्रिंट माध्यम में प्रकाशित रचनाएँ, जोकि वेब माध्यम में प्रकाशित न हो, को वेब हेतु अप्रकाशित मानते हुए ओ बी ओ पर प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान करते हैं ।

जैसा कि आप जानते है ओ बी ओ सीखने-सिखाने का मंच है । हमारा प्रमुख उद्देश्य नव-सृजन को बढ़ावा देना है । ओ बी ओ प्रबन्धन यह कभी नहीं चाहता कि यह मंच केवल विभिन्न रचनाओं के संकलन का मंच हो कर रह जाय । यदि वेब पर पहले से सामग्री है तो वही सामग्री ओ बी ओ में भी संग्रहित कर हम क्या पायेंगे ? किन्तु रचनाकारों को एक भी नवीन रचना सृजित करने हेतु प्रेरित कर पाये तो यह हमारे लिए ख़ुशी की बात होगी ।

सादर 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 22, 2015 at 4:20pm
बेहद ख़ूबरू ग़ज़ल के लिए अभिवादन्।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
47 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
53 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
56 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
16 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
19 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service