For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धर्म-कर्म उत्क्रम (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी (38)

"अब तो संतुष्ट हो न ! जी भर गया हो तो चलूं मैं ? लेकिन मैं ख़ुद नहीं जा सकती न, तुम ही मुझे छोड़ने चलो, तुम ही छोड़ोगे मुझे ! " - उसने झकझोरते हुए कहा।

"अभी नहीं, कुछ दिन और रुको , मुझे मालूम है कि एक दिन तुम्हें जाना ही है, लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी रवानगी से दीवानगी में इजाफा ही हो, मेरी ही नहीं, सभी की ! अभी तो मुझे बहुत कुछ करना है !"

"नहीं बहुत हो गया । कितने एंगल से देखोगे मुझे ? तीन सौ साठ डिग्री हो चुका न , ढल चुकी हूँ मैं, संवर चुकी हूँ मैं ! अब मुझे आज़ाद कर दो, उन्मुक्त विचरण करने दो मुझे गगन में, जगत में , जन-जागरण के लिए साहित्य गगन में , मानव जगत में !" - इन शब्दों के साथ ही निर्देशित होकर अतिरिक्त अनावश्यक पंख गिराते हुए बेइंतहां ख़ूबसूरत 'लघुकथा' डायरी रूपी पिंजड़े से निकल कर स्वतंत्र हो गई, इन्टरनेट की दुनिया में उन्मुक्त विचरण करने लगी, कभी इस लहर पर, तो कभी उस वेब पर ! झूम रही थी सराहना पाकर!

देर रात सोया लेखक गहरी नींद में भी सपने में कभी मुस्करा रहा था, तो कभी बुदबुदा रहा था-" ख़ुश रहो, मेरा धर्म-कर्म पूरा हुआ, अब तुम अपना धर्म-कर्म, उत्क्रम करती रहो ! सृजन के बाद रचना पर पूरा अधिकार पाठकों का होता है, लेखक का नहीं रे !"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 588

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 5:15am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने हेतु सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 5:15am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने हेतु सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 5:10am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय पाठकगण।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 16, 2015 at 5:00pm
मेरी रचना पर उपस्थित हो कर प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।
Comment by Manan Kumar singh on December 1, 2015 at 8:47pm
वाह भाई उस्मानीजी! बेहद हृदयग्राही अवधारणा!
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 1, 2015 at 11:55am
खुशनसीबी है मेरी कि मेरे बारे में चिंतन करके, बहुत ही भिन्न टिप्पणी के ज़रिये पहली बार आपने मुझसे ये बातें कह कर मुझे एक राह दिखाई है। आपकी राय पर पूरा अमल करने की कोशिश करूँगा। तहे दिल बहुत बहुत शुक्रिया मेरी रचना पर उपस्थित हो कर हौसला बढ़ाने के लिए व राह दिखाने के लिए आदरणीय प्रदीप नील जी।
Comment by प्रदीप नील वसिष्ठ on November 30, 2015 at 9:30pm

अज़ीज़ शेख भाई , आपकी हर रचना पर टिप्पणी न दे कर इतना कहूँगा
आपकी रचनाएँ पढ़ कर महसूस होता है -आप के पास कहने को बहुत कुछ है मगर ढंग से कह नहीं पाते। यह बात आपको तकलीफ भी देती होगी मगर इसका हल भी आप ही को खोजना होगा कि क्या लिखूं। लेकिन उससे ज़्यादा ज़रूरी यह सीखें कि क्या न लिखें ।
आप शुद्ध हिंदी प्रयोग करते हैं। इसमे कुछ उर्दू आने दें। यह मिश्रण हिंदुस्तान की भाषा है।
और हाँ , कुछ दिन शरत चन्द्र चटर्जी को पढ़िए। सिर्फ पढ़िए। लिखिए मत। बहुत उम्र पड़ी है लिखने को। पढ़िए फिर आपको किसी से पूछना नहीं पड़ेगा --कैसे लिखूं ?
खुश रहें

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 29, 2015 at 2:34am
आदरणीय दिग्विजय जी रचना के अवलोकन तथा टिप्पणी करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। विनम्र निवेदन है कि कृपया एक बार पुनः पढ़कर कमियों को विस्तार से बताईयेगा।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 29, 2015 at 2:30am
रचना पर उपस्थित हो कर सराहना और प्रोत्साहन हेतु हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय तेज वीर सिंह जी व आदरणीय सतविंदर कुमार जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 28, 2015 at 7:50pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी!बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आ. समर सर,मिसरा बदल रहा हूँ ..इसे यूँ पढ़ें .तो राह-ए-रिहाई भी क्यूँ हू-ब-हू हो "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"धन्यवाद आ. समर सर...ठीक कहा आपने .. हिन्दी शब्द की मात्राएँ गिनने में अक्सर चूक जाता…"
9 hours ago
Samar kabeer commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"जनाब नीलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई, बधाई स्वीकार करें । 'भला राह मुक्ति की…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, सार छंद आधारित सुंदर और चित्रोक्त गीत हेतु हार्दिक बधाई। आयोजन में आपकी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी,छन्नपकैया छंद वस्तुतः सार छंद का ही एक स्वरूप है और इसमे चित्रोक्त…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, मेरी सारछंद प्रस्तुति आपको सार्थक, उद्देश्यपरक लगी, हृदय से आपका…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा पाण्डे जी, आपको मेरी प्रस्तुति पसन्द आई, आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी उत्साहवर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार। "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 159 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service