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सूफी शैली में एक गीत ............//डॉ० प्राची सिंह

माही मुझे चुरा ले मुझसे, मेरी प्याली खाली कर दे।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।


मैं बदरी तू फैला अम्बर
मैं नदिया तू मेरा सागर,
बूँद-बूँद कर प्यास बुझा दे
रीती अब तक मन की गागर,
लहर-लहर तुझमें मिल जाऊँ, अपनी लय भीतर-बाहर दे।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।


शब्द तू ही मैं केवल आखर
तू तरंग, मैं हूँ केवल स्वर,
रोम-रोम कर झंकृत ऐसे
तेरी ध्वनि से गूँजे अंतर,
माही दिल में मुझे बसा कर, कण-कण आज तरंगित कर दे
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।


बोले अब ये दिल की तड़पन
तोड़ूँ सारे झूठे बंधन,
भीगूँ यूँ तेरी बारिश में
जी लूँ मैं पतझड़ में सावन,
मुझको साकी गले लगा ले ,वरना आ अब मुझे ज़हर दे ।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।


दरस तेरा मन कैसे पाए,
राह बता जो तुझ तक लाए,
तुझ तक पहुँचे मेरी तड़पन
खुद तू ही मिलने आ जाए,
हर मंज़र में तुझको पाऊँ, मुझको साकी वही नज़र दे।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे।

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 21, 2016 at 1:50pm

आदरणीया प्राची जी दरस तेरा मन कैसे पाए,
राह बता जो तुझ तक लाए,
तुझ तक पहुँचे मेरी तड़पन
खुद तू ही मिलने आ जाए,
हर मंज़र में तुझको पाऊँ, मुझको साकी वही नज़र दे।
रम जा या फिर मुझमे ऐसे, छलके प्याली इतना भर दे....मन को मुग्ध करते इस गीत की इन पंक्तियों के लिए बिशेस रूप से बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by kanta roy on February 17, 2016 at 11:38am
छलके प्याली इतना भर दे।------ अद्वितीय है यह छलकने की आरज़ू !

दरस तेरा मन कैसे पाए,
राह बता जो तुझ तक लाए,
तुझ तक पहुँचे मेरी तड़पन
खुद तू ही मिलने आ जाए,...... वाह ! क्या डूब कर गहराई से लिखा है आपने कि हम पंक्ति दर पंक्ति डूबते ही चले गये ।


हर मंज़र में तुझको पाऊँ, ------ क्या कहने है इस अभिव्यक्ति में उन्मुक्तता की , बेहतरीन रचना ! पढ़ने के बाद आज दिन भर इसका असर छाया रहेगा ।
मन कहता है आज कुछ और ना पढु ,बस यहीं पर ,इन्हीं पंक्तियों में ठहर जाऊँ । हृदय से बधाई आपको आदरणीया प्राची जी ।
Comment by Shyam Narain Verma on February 16, 2016 at 6:02pm

सुन्दर गीत के लिए आपको बधाई i

सादर

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