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आज का मामला बहुत गंभीर था| पूरे थाने को अकेले एक हवलदार के भरोसे छोड़कर बाकी सभी पुलिसकर्मी रात से उसी स्थान के आस-पास उसे तलाश रहे थे| सवेरा होते-होते सभी के चेहरों पर थकान झलकने लगी, सवेरे की पाली के  पुलिसकर्मीयों को भी वहीँ बुला लिया गया| लेकिन ऊपर से आदेश होने के कारण रात्रि की पाली वाले भी नहीं जा सकते थे|

इतने में वृत्तनिरीक्षक के पास अधीक्षक का फोन आया, उसने फ़ोन उठाया और कहा, "जय हिन्द हुजूर! ....... अभी तक कोई हलचल नहीं हुई है ......... अच्छा! अभी भी इसी इलाके में होने की सम्भावना है, फिर से सर्च करवाता हूँ..."

फोन रखते ही वृत्तनिरीक्षक ने चारों तरफ नजरें घुमाई और सबको संबोधित करते हुए कहा, "वो यहीं-कहीं होना चाहिए|" उसके कहते ही सभी मुस्तैद हो गये और चारों तरफ खोजी निगाहों से देखना शुरू कर दिया|

तभी उनमें से किसी को गली के पीछे से झांकती एक परछाई दिखी, वो चिल्लाया, "अरे..कहीं वहां तो नहीं"

पूरा दस्ता उस तरफ दौड़ा, उसे दूर से देखते ही वृत्तनिरीक्षक ने कहा, "हाँ! शायद वही है..."

पुलिसकर्मियों को दौड़ कर आते देख वो भी मुड़ कर भागा, लेकिन अधिक दूर भाग नहीं पाया, आखिरकार पकड़ा गया|

वृत्तनिरीक्षक के पास उसको लाया गया, उसने उसकी गर्दन को पकड़ कर नीचे झुकाया, और गले के पट्टे पर सुनहरे अक्षरों में अंग्रेजी में खुदे 'टॉमी' नाम देखकर हाँ  की मुद्रा में गर्दन हिलाई, 'टॉमी' भौंक रहा था, उसके मुंह से गुस्से में अनायास निकल गया, "चुप कर मंत्री जी के कु....."

पूरा वाक्य वो कह नहीं पाया लेकिन सबके साथ उसने भी राहत की साँस ली|

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 1, 2016 at 7:22pm

आदरणीया Rahila जी, आदरणीया kanta roy जी, आदरणीया annapurna bajpai जी, आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी, आदरणीय  जयनित कुमार मेहता जी, आप सभी का सादर आभार, आपको लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा और अपनी स्नेहयुक्त टिप्पणी से आपने मेरा उत्साहवर्धन किया| सादर,

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 28, 2016 at 9:30am

वाह! आदरणीय चंद्रेश कुमार जी। कहाँ इंसानों की सुधि लेने वाले जल्दी दिखते नहीं, और कहाँ एक पालतू कुत्ते के लिए इतनी भागदौड़।ल।।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on February 25, 2016 at 4:48pm

हा हा बेहतरीन पञ्च आदरणीय चन्द्रेश  जी.नेताओं के जानवरों की भी  रखवाली..और  गम जाने पर स्पेशल सर्च .आम जन में से कोई मरे कोई गुम उनका कुछ नहीं..बहुत खूब. हार्दिक बधाई.

Comment by annapurna bajpai on February 25, 2016 at 12:36pm

वाह , वाह क्या खूब लघु कथा लिखी है , जबर्दस्त पंच ! 

Comment by kanta roy on February 24, 2016 at 11:20am
वाह ! क्या अद्वितीय संप्रेषण हुआ है यहाँ आपका लघुकथा में आदरणीय चंद्रेश जी ! फिर से चकित हूँ मै । पूरे थाने को अकेले एक हवलदार के भरोसे निकल पड़े ढूंढने , रात से सुबह कर दिया और पूरी टीम ने जी - जान लगा कर , तन्मयता से आखिर ढूंढ ही लिया मंत्री जी के " टाॅमी " को ।
यहाँ कुत्ते और गले की सुनहरी नाम वाली पट्टी का बतौर प्रतीक बहुत ही सघे हुए अंदाज़ में प्रयुक्त किया है । पुलिसनुमा टाॅमी .... क्या बात है इस लेखन का ।
ढेरों बधाई आपको ।
Comment by Rahila on February 24, 2016 at 9:39am
ओह. .सारी कवायत मंत्री जी के लाड़ले के लिये । बहुत खूब, शानदार रचना । बहुत बधाई आदरणीय सर जी! सादर

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