आज शर्मा जी के घर में बहुत हलचल थी, कई रिश्तेदार भी मिलने आये हुए थे| शर्मा जी रिटायर होने के बाद, अपनी पत्नी के साथ छह महीने की तीर्थयात्रा पर जा रहे थे| उनके दोनों बेटे और बहुएँ भी बहुत खुश थे| बेटे इसलिए कि अपनी कमाई से अपने माता-पिता को तीर्थ करवा रहे हैं और बहुएँ इसलिए कि अगले छह महीने वो घर की रानियाँ बन कर रहेंगी|
पूजा-पाठ कर प्रसाद हाथ में लिए दोनों पति-पत्नी ने जैसे ही घर के बाहर कदम रखा, बाहर खड़ी एक बिल्ली उनका रास्ता काट गयी| एक बेटे ने उस बिल्ली को हाथ से भगाते हुए पिता की तरफ देख कर कहा, "पापा, आप थोड़ी देर रुके ही रहिये, अपशकुन हुआ है|"
वो रुक गये और मन ही मन कुछ जाप करने लगे|
जाप खत्म होने के बाद फिर बढ़ने लगे कि बिल्ली फिर से रास्ता काट गयी| अब दूसरे बेटे से रहा नहीं गया, मेहनत की गाढ़ी कमाई और पूरे मन से माता-पिता के लिये तीर्थयात्रा की व्यवस्था की थी, उसमें विघ्न उसके बर्दाश्त के बाहर था| वो एक डंडा लेकर बिल्ली को मारने आगे बढ़ा, लेकिन उसके पिता ने तुरंत उससे आगे निकल कर बिल्ली को गोद में ले लिया|
और उस बिल्ली को पुचकारते हुए कहा, "चल तू भी चल हमारे साथ, पोते-पोती छोटे हैं, अब तेरा यहाँ ध्यान कौन रखेगा?" कहते हुए अपने हाथ का प्रसाद बिल्ली के मुंह की तरफ बढ़ा दिया|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
अच्छा सन्देश देती हुई सुन्दर लघु कथा..
भ्रमर ५
रचना को पसंद कर मेरी हौसला अफज़ाई करने के लिये सादर आभार आदरणीया Rahila जी, आदरणीय TEJ VEER SINGH जी सर, आदरणीया rajesh kumari जी, आदरणीया pratibha pande जी|
खुद को आधुनिक कहने वाले लोग भी अक्सर अंधविश्वासों में जकड़े दिखते है ,सुन्दर रचना है ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय चंद्रेश जी
अंधविश्वास पर करारा व्यंग करते हुए अच्छा सन्देश देती हुई लघु कथा बहुत खूब आ० चंद्रेश कुमार जी बधाई स्वीकारें
हार्दिक बधाई आदरणीय चंद्रेश जी!बेहतरीन प्रस्तुति!अंध विश्वास और पशु प्रेम!एक तीर से दो शिकार!
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