उसकी दाढ़ी बनाई गयी, नहलाया गया और नये कपडे पहना कर बेड़ियों में जकड़ लिया गया| जेलर उसके पास आया और पूछा, "तुम्हारी फांसी का वक्त हो गया है, कोई आखिरी इच्छा हो तो बताओ|"
उसका चेहरा तमतमा उठा और वो बोला, "इच्छा तो एक ही है-आज़ादी| शर्म आती है तुम जैसे हिन्दुस्तानियों पर, जिनके दिलों में यह इच्छा नहीं जागी|"
वो क्षण भर को रुका फिर कहा, “मेरी यह इच्छा पूरी कर दे, मैं इशारा करूँ, तभी मुझे फाँसी देना और मरने के ठीक बाद मुझे इस मिट्टी में फैंक देना फिर फंदा खोलना|"
जेलर इस अजीब सी इच्छा को सुनकर बोला, "तू इशारा ही नहीं करेगा तो?"
वो हँसते हुए बोला, " आज़ादी के मतवाले की जुबान है, अंग्रेज की नहीं...."
जेलर ने कुछ सोचकर हाँ में सिर हिला दिया और उसे ले जाया गया| उसके चेहरे पर काला कपड़ा बाँधा गया, उसने जोर से साँस अंदर तक भरी, फेंफड़े हवा से भर गए, कपड़े में छिपा उसका मुंह भी फूल गया| फिर उसने गर्दन हिला कर इशारा किया, और जेलर ने जल्लाद को इशारा किया, जल्लाद ने नीचे से तख्ता हटा दिया और वो तड़पने लगा|
वहां हवा तेज़ चलने लगी, प्रकृति भी व्याकुल हो उठी| मिट्टी उड़ने लगी, जैसे उसका सिर चूमना चाह रही हो, लेकिन काले कपड़े से ढके उसके चेहरे तक पहुँच न सकी| उसकी साँसों की गति हवा की गति के साथ मंद होती गयी, और कुछ ही क्षणों में उसका शरीर शांत हो गया| उसे उतार कर धरती पर फैंक दिया गया, वो जैसे करवट लेकर सो रहा था| फिर उसके फंदे को खोला गया, फंदा खोलते ही उसके फेंफडों में भरी हवा तेज़ी से मुंह से निकली और धरती से टकराई, मिट्टी उड़कर उसके चेहरे पर फ़ैल गयी|
आखिर देश की मिट्टी ने उसका श्रृंगार कर ही दिया|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय मिथिलेश जी, आदरणीया राहिला जी, आदरणीय सुरेन्द्र कुमार शुक्ला जी, आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी, आप सभी कर सादर आभार आप सभी ने रचना को पसंद कर अपनी टिप्पणी से मेरा उत्साहवर्धन किया। निवेदन है कि ऐसे ही स्नेह बनाये रखें|
आदरणीय चंद्रेश जी, अपने शीर्षक को सार्थक करती अद्भुत लघुकथा लिखी है आपने. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
देशप्रेम ....बेहतरीन प्रस्तुति..बधाई दिल से
भ्रमर ५
आदरणीया कांता रॉय जी, आदरणीय सुनील वर्मा जी भाई, आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर, आदरणीया नीता कसार जी, आदरणीय समीर कबीर जी साहब, आप सभी कर तहेदिल से शुक्रिया आप सभी ने रचना को पसंद कर अपनी टिप्पणी से मेरी हौसला अफज़ाई की। निवेदन है कि ऐसे ही स्नेह बनाये रखें| पुनः सादर आभार।
आदरणीय Samar kabeer जी भाई जी, सादर प्रणाम। फांसी के लिये मैंने कहीं यह पढ़ा था कि फांसी मेँ व्यक्ति के गले मेँ रस्सी का फन्दा कस जाता है और उसका साँस मार्ग अवरुद्ध हो जाने से उसका दम घुट जाता है और इस प्रकार उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। इस रचना में यह कल्पना करने का प्रयास किया था कि पहले फेंफडों में हवा भरी, फिर जब फांसी लगी तो साँस मार्ग अवरूद्ध हुआ और हवा अंदर ही रह गयी, म्रत्यु के पश्चात जब फंदा खोला तो उसमें से हवा उपर की तरफ उठ कर मुंह के रास्ते से बाहर आई। आपका सादर आभार आपने रचना का इतनी गहराई से विश्लेषण किया, यदि कोई गलती तो ज़रूर बताएं, मैं आपका कर्ज़दार रहूँगा।
हार्दिक बधाई आदरणीय चंद्रेश जी! बेहतरीन प्रस्तुति!
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