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लघुकथा : सुकून (गणेश जी बागी)

                         व्यंग्यात्मक शैली में लिखने के लिए जाना जाता है, उसकी कवितायेँ बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से राजनेताओं पर तीखी मार करती हैं, उसकी कविता प्रतिष्ठित अखबार के साहित्यिक स्तम्भ में आज प्रकाशित हुई है, कल से ही वो परेशान और बेचैन था, जाने क्या होगा, पता नहीं उसकी अभिव्यक्ति को लोग समझ भी पाएंगे अथवा नहीं, रात भर वह सो न सका ।
                        सुबह होते ही मोबाइल की घंटियां बजने लगी, उसका मन शांत था और चेहरे पर सुकून के भाव थे, उसकी अभिव्यक्ति समझ ली गयी थी, गालियों संग धमकियों का दौर चालू हो गया था ।

(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment by kanta roy on June 2, 2016 at 10:48pm

लाजवाब  लघुकथा  है  ये  आपकी  आदरणीय गणेश जी 'बागी ' जी , बहुत -बहुत  बधाई  आपको . 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 2:51pm

बहुत कमाल की लघुकथा हुई है भाई गणेश बागी जी, बधाई प्रेषित है।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 8, 2014 at 12:10pm

सादर नमन ,सर

दरअसल सर, १८ नबम्बर को एक सड़क दुर्घटना में मेरे दायें हाथ व् पैर में काफी चोट आई. हाथ की सर्जरी के कारण मुझे १० दिनों तक हॉस्पिटल में एडमिट रखा गया. हाथ पूरा कवर्ड किया हुआ है जो फरवरी तक रहेगा. बाएं हाथ से टाइपिंग में परेशानी होती है. अत कमेन्ट नही लिख पाटा.

लघुकथा पर आपको पुन: बधाई ,सर . आपके स्नेह हेतु हमेशा आपका आभारी हूँ

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2014 at 10:56pm

क्या महीनी है ! वाह-वाह !! इस लघुकथा का अंदाज़.. सुबहानअल्लाह !!!


गणेशभाई, कहना न होगा, आजकल लघुकथाओं पर आपकी पकड़ इतनी सशक्त होती जा रही है कि बस मुग्ध हुआ जा सकता है. इधर की कई लघुकथाएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हुई हैं. इन संग्रहणीय ही नहीं, अनुकरणीय प्रयासों पर हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें.
शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 7, 2014 at 8:47pm
आदरणीय बागी जी अत्यधिक प्रभावशील और सीधे दिमाग को झंकझोर देने वाली कहानी । सब कुछ समझ में आने के बाद भी उस सत्य का प्रश्न दिमाग में लगातार चलने लगा है। बेहतरीन लघुकथा।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 7, 2014 at 7:10pm

प्रिय सोमेश जी, आपकी सराहना निश्चित ही और अच्छा लिखने हेतु प्रेरित करती है, बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 7, 2014 at 7:09pm

आदरणीय अखिलेश भाई साहब, दो पक्तियों मे आपने लघुकथा को समेट दिया है, बहुत बहुत आभार .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 7, 2014 at 7:05pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपकी टिप्पणी सदैव उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार . 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 7, 2014 at 7:05pm

इस आशीष हेतु आभार आदरणीय विजय निकोर जी .


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 7, 2014 at 7:04pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पास्तारिया जी, आजकल आपकी उपस्थिति कम हो रही है .

कृपया ध्यान दे...

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