अतुकांत कविता : केसर के फूल
चौक गया
यह देखकर
स्कूल के फर्श पर
फैला गाढ़ा रंग
बिलकुल वैसा ही था
जैसा
कुछ वर्ष पहले था
मुंबई के प्लेटफॉर्म पर
कोई अंतर नहीं
एकदम सुर्ख़ लाल रंग
उपजाऊ भूमि
बो दिया बारूद
इस उम्मीद में
कि .........
केसर फूलेंगे ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
इस कविता पर आपकी उपस्थिति और सराहना उत्साह्वार्धित करती है, बहुत बहुत आभार आदरणीय भुवन निस्तेज जी.
आदरणीय गिरिराज भाई साहब, आपकी सराहना उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार .
आदरणीय सौरभ भईया, आपका आशीर्वाद प्राप्त होने के बाद रचना सार्थक हो जाया करती है, मुक्तकंठ से आपकी सराहना निश्चित ही उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार .
आदरणीया अर्चना तिवारी जी, कविता मूल रूप में आप तक पहुँच सकी इसकी ख़ुशी है, उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार .
आदरणीय बाग़ी जी , केसर की चाह मे बारूद ! बौत कम शब्दों में बहुत सटीक बात कही आपने ! रचना के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
भाई गणेशजी, आपकी यह रचना सीधी-सादी भाषा में सटीक बातें करती हुई है. कई बार ऐसी बातों का होना आवश्यक लगता है.
’केसर फूलेंगे’ जैसी उम्मीद कभी राक्षसी नहीं हो सकती. लेकिन इस उम्मीद की ओट में यदि घृणित को साधने की सोच हो, तो ऐसी उम्मीद लगाने वालों की प्रवृति में खोट साफ दिखने लगता है. कवि संवेदनशील ही नहीं होता बल्कि समाज को यथार्थ की कसौटियों के प्रति इंगित भी करता है. ऐसे में, आपका प्रयास वस्तुतः श्लाघनीय है.
इस रचना केलिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
कविता आपको अच्छी लगी इसके लिए आभार प्रिय सोमेश जी .
सराहना हेतु आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी .
आदरणीय गोपाल नारायण जी, कविता आपको अच्छी लगी, लेखन कर्म सार्थक हुआ, आभार व्यक्त करता हूँ .
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