छंद : घनाक्षरी
झट छायी चिंता-रेखा,
नीला-नीला पाँव देखा,
पहुँचे करीम चच्चा, शफ़ाख़ाना आस में.
देखते हकीम बोला,
पाँव में ज़हर फैला,
दोनों पाँव काट डाले, ज़िन्दग़ी की आस में.
बात हुई ज़ल्द साफ़,
कट गये पर पाँव,
डरता हकीम आया, चच्चा जी के पास में.
सुनो जी करीम भाई,
बात ये समझ आई,
लुंगी रंग छोड़ रही, बोला एक साँस में. :-)))))))))
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
आदरणीय गणेश भाईजी,
मज़ा आ गया इस हास्य घनाक्षरी को पढ़कर। हार्दिक बधाई । बड़ी दूर की सोच है आपकी। लुंगी डांस वाले भी सहम गये होंगे।
सस्ती लुंगी , नीम हकीमी, हो गया बंटाढार ।
करीम मियाँ विकलांग हुए, हकीम मियाँ गिरफ्तार ॥
सुनो जी करीम भाई,
बात ये समझ आई,
लुंगी रंग छोड़ रही, बोला एक साँस में. :-)))))))))
पढ़ते पढ़ते हंसी आ ही गयी ....ग़जब !!!! आदरणीय बागी जी... आपकी रचना अक्सर गुदगुदाते हैं....सादर!
घनाक्षरी आपको गुदगुदा सकी, लेखन कर्म सार्थक हुआ, बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी.
प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीय राहुल डांगी जी .
आदरणीया छाया शुक्ला जी, यदि यह रचना हास्य के महारथी काका हाथरसी की याद दिला दी तो रचना सफल और लेखन कर्म सार्थक हो गया, उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार .
हाहाहा ....हँसी का फव्वारा छोड़ती हुई प्रस्तुति वाह आ० गणेश जी ,जबरदस्त हास्य घनाक्षरी ..बहुत बहुत बधाई आपको
ह्ह्ह्हह ! फुलझड़ियाँ याद आ गईं आ. हाथरसी जी की खूब सारी बधाई इस हास्यरस प्रस्तुती पर सादर नमन !
आ. गणेश जी बागी भाई जी !
आदरणीय गिरिराज भाई साहब, सराहना और उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभार व्यक्त करता हूँ .
आदरणीय खुर्शीद खैराडी जी, यह रचना आपको गुदगुदा सकी, सृजन सार्थक हुआ, आभार .
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