अतुकान्त कविता : पगली
विवाहिता या परित्यक्तता
अबला या सबला
नही पता .......
पता है तो बस इतना कि
वो एक नारी है ।
साथ में लिए थे फेरे
फेरों के साथ
वचन निभाने के वादे
किन्तु .......
उन्हे निभाना है राष्ट्र धर्म
और इसे ……
नारी धर्म
पगली !!
उनकी सफलता के लिए
व्रत, उपवास, मनौती
मंदिरों के चौखटों पर
पटकती माथा
और खुश हो गयी
महज सुनकर कि
एक सरकारी कागज में
पत्नी की जगह
उन्होने उसका नाम लिख दिया
मज़बूरी मे ही सही
पहले तो छोड़ देते थे खाली
पगली !!
काल चक्र घुमा
मन्नतें पूर्ण हुईं
बड़ी उम्मीद से सूर्य की ओर तकती
कोई किरण लेकर आएगी बुलावा
इंद्रासन पर बैठते हुए देखना चाहती थी
पगली !!
कोई शिकायत नही
संस्कारी नारी
स्कूल मे पढ़ाती रही
ढाई आखर प्रेम के
किंतु
खुद न पढ़ सकी
सुबह से रात
रात से सुबह
फिर आस जग उठी
आएगा इंद्रलोक से बुलावा
रहने जाएगी महल में
पगली !!
हाय री नारी
यह दिन भी देखना पड़ा
पूछना पड़ा
क्या है अधिकार
उसे आज भी लगता है
वह है अर्धांगिनी
पगली !!
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
बहुत बढ़िया मार्मिक कविता गणेश भईया
बहुत बहुत आभार आदरणीय धर्मेन्द्र जी.
आदरणीय विजय प्रकाश शर्मा जी, कविता पर आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धक है, बहुत बहुत आभार.
सराहना और उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी.
सराहना और उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी.
सराहना हेतु आभार प्रिय राम भाई.
आदरणीय गिरिराज भाई साहब, आपकी सराहना उत्साहवर्धक है, बहुत बहुत आभार.
आदरणीय गुरुदेव श्री योगराज प्रभाकर जी, आपका आशीर्वाद इस रचना को प्राप्त हुई, लेखन कर्म सार्थक हुआ, बहुत बहुत आभार.
you have done wonderful job we pray to the god help her to fulfill her wish.
और खुश हो गयी
महज सुनकर कि
एक सरकारी कागज में
पत्नी की जगह
उन्होने उसका नाम लिख दिया
मज़बूरी मे ही सही
पहले तो छोड़ देते थे खाली
पगली !!
.....
हाय री नारी
यह दिन भी देखना पड़ा
पूछना पड़ा
क्या है अधिकार
उसे आज भी लगता है
वह है अर्धांगिनी
पगली !!
बहुत ही मार्मिक और सच्ची रचना आदरणीय
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