For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघु - कवितायें - 01 - डॉo विजय शंकर

तालाब की दुर्गन्ध
दूर दूर तक फ़ैली थी ,
वो कुछ मछलियों
के भाग जाने का
हवाला दे रहे थे।
**********************
लोग जितने नासमझ होगे
उतनी आप की बात मानेंगे।
लोग जितने टूटेंगे ,
आप उतने मजबूत होंगे।
आप जितनी रोटियां बाटेंगे ,
लोग उतने आपके होंगे।
***********************
राम का नाम सत्य है ,
कभी राम का निर्वासन हुआ ,
आज सत्य का हुआ है।
कारण तब भी राजनैतिक थे ,
अब भी राजनैतिक है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 723

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 19, 2016 at 7:10pm
आपकी उपस्थिति से क्षणिकाओं का मान बढ़ा , आदरणीय सौरभ पांडेय जी , आभार एवं धन्यवाद , सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2016 at 4:55pm

क्षणिकाओं के कथ्य स्पष्ट हैं, तभी संप्रेषणीयता भी सटीक है, आदरणीय विजय शंकरजी. 

हार्दिक शुभकामनाएँ 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2016 at 10:26pm
आदरणीय सुश्री कान्ता रॉय जी , आपको रचना को पसंद कर उसका मान बढ़ाया , आभार , आपकी सद्भावनाओं हेतु हृदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2016 at 10:24pm
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , आपको रचना अच्छी लगी , आभार , आपकी सद्भावनाओं हेतु हृदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by kanta roy on June 15, 2016 at 8:34pm

आप जितनी रोटियां बाटेंगे ,
लोग उतने आपके होंगे।---- वाह ! कम  शब्दों में  बड़ी  बात  कह  दी  आपने . बहुत-बहुत बधाई  आपको 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2016 at 8:16pm

राम का नाम सत्य है ,
कभी राम का निर्वासन हुआ ,
आज सत्य का हुआ है।
कारण तब भी राजनैतिक थे ,
अब भी राजनैतिक है।---------------विजय सर -------कम शब्दों में आप्प्का प्रहार बड़ा दूरगामी होता है . आपको बधाई .                                                                                          , 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2016 at 6:03pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,आपको रचना पसंद आई , आभार , आपके गम्भीर विचारों के लिए आपका हृदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2016 at 6:00pm
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी ,आपको रचना पसंद आई , आपके सुविचारों के लिए आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2016 at 6:00pm
आदरणीय केवल प्रसाद जी , रचना पसंद आई , आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2016 at 5:32pm

राम का नाम सत्य है ,
कभी राम का निर्वासन हुआ ,
आज सत्य का हुआ है।
कारण तब भी राजनैतिक थे ,
अब भी राजनैतिक है।   ---   लाजवाब । हर युग मे राम निर्वासित होगा , चाहे राम के रूप में चाहे सत्य के रूप में । बाक़ी दोनो रचनायें भी अच्छी लगीं , हार्दिक बधाइयाँ , आ. विजय शंकर भाई जी आपको ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service