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महाराणा प्रताप (वीर छंद प्रयास)

वीर कहीं रावल बप्पा थे,राणा कुम्भा की थी शान
आधी देह संग लड़ जाते,राणा सांगा बहुत महान
जिनके पुरखों की गाथा का,कर पाया न कोई बखान
कहें महाराणा जी सारे,उन प्रताप का गाऊं गान

जैवन्ता बाई थी माता,औ उदय सिंह जी थे तात
बड़े चाव से उनको पाला,शुरु से सीखी अच्छी बात
पलते-बढ़ते ही राणा ने,दुश्मन की जानी औकात
मौके पर ही धोखा देदे,ऐसी थी अकबर की जात

अकबर ने तो यह सोचा था,जीतेगा वह हिंदुस्तान
नतमस्तक बहु राज्य हुए थे,बढ़ जाती थी उसकी शान
राजपुताना खटक रहा था,घटता जिससे उसका मान
जीतेंगे हम राजपुताना ,ली थी उसने अब ये ठान

एकलिंग दीवान अड़े थे,नहीं मिटाई अपनी आन
झुके नहीं अकबर के आगे,मातृभूमि का रक्खा मान
हल्दी घाटी युद्ध लड़ा था,अकबर को करवाया ज्ञान
स्वाधीनता उन्हें थी प्यारी,उसके लिए लगादी जान

एक युद्ध वे हार गए थे,पर दिल से मानी कब हार
सचित्तौड़ मेवाड़ छुड़ाएं, मन में ली थी पक्की धार
महल भोग सुख सब छोड़े,बण में रहना था स्वीकार
एक एक करके सब जीते,जितने दुर्ग गए थे हार

था चित्तौड़ किला राणा को, करते जिससे प्रेम अपार
जीत नहीं वापिस पाए थे,टीस रही थी मन को मार
अंत समय कुंवर को बोला,तुम पर डालूँ मैं ये भार
चाले जब दुनिया से राणा, निकली अकबर की अश्रुधार

मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 25, 2016 at 12:40am
नमनआदरणीय समर कबीर साहब हौंसलाफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।सादर नमन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 25, 2016 at 12:39am
प्रयास का अनुमोदन कर,प्रोत्साहित करने के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीया प्रतिभा पांडे जी।सादर नमन
Comment by Samar kabeer on July 24, 2016 at 11:42pm
जनाब सतविंदर कुमार जी आदाब,बहुत बढ़िया वीर छन्द लिखे बधाई स्वीकार करें ।
Comment by pratibha pande on July 24, 2016 at 7:01pm

महाराणा प्रताप और वीरता एक दूसरे के पर्याय हैं ,उनकी वीरता के गुणगान के लिए  वीर छंद ही हो सकता है ,इस छंद के शिल्प का तो मुझे ज्ञान नहीं है पर भावों में जोश भरा है   हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय सतविंदर जी 

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