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कहने को दोस्त हैं बहुत

लेकिन दोस्त,

सच में 

तुम ही  "एक"  दोस्त थी मेरी

अपरिभाषित दिशाओं के पट खोल

सुविकसित कल्पनाओं को बहती हवाओं में घोल

मुझको अँधियाले ताल के तल से

प्रसन्नता की नभचुम्बी चोटी पर ले गई थी

वह तुम ही तो थी

हर हाल में मुझको

लगती थी अपनी

इतनी

कि मैं पैरों के घिसे हुए तलवों को

मन की फटी हुई चादर की सलवटों को

दिखाने में संकोच नहीं करता था...

सवाल ही नहीं उठता था

तुम इतनी अपनी जो थी

कभी कोई राज़ नहीं था

कोई बनावट नहीं थी

सफ़ाई थी, बस सफ़ाई

और थी अजीब अनोखी छलकती सादगी

हम दोनों की सच्चाई को जो

और सच कर देती थी

तुम्हारी नशीली हँसी की तरह

गुड़-सी बातों की तरह

पर अब बदले हुए माहौल में उलझे खयालों में

दोस्ती के धुआँसे खंडहरों में

ज़िन्दगी पलट गई

मानो सच्चाई सच्चाई न रही

दोस्ती के मिटे हुए घेरे के बाहर

उड़ती हुई धूल के बगूलों में

"आशना" और "बावफ़ा" होना

 अब एक खतरनाक ठहाका है

ज़िन्दगी के नए बड़े-बड़े दर्द

अनबने-अधबने नए रिश्तों के बीच

नि:सन्देह छटपटाहट और उलझाव

इस दोस्ती के न होने का आज

दुख शायद तुमको भी है

--------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाषित)

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Comment by vijay nikore on November 9, 2016 at 6:29am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी।

Comment by vijay nikore on January 3, 2016 at 6:35pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय समर जी।

Comment by Sushil Sarna on December 14, 2015 at 1:31pm

ज़िन्दगी के नए बड़े-बड़े दर्द
अनबने-अधबने नए रिश्तों के बीच
नि:सन्देह छटपटाहट और उलझाव
इस दोस्ती के न होने का आज
दुख शायद तुमको भी है

शानदार प्रस्तुति आदरणीय .... यथार्थ को जीती इस रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।

Comment by Samar kabeer on December 14, 2015 at 10:50am
जनाब विजय निकोरे जी सूंदर रचना के लिए बधाई हो |
Comment by vijay nikore on December 13, 2015 at 9:12am

आदरणीय आशीष जी, रचना आपको अच्छी लगी, आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on December 13, 2015 at 9:11am

आदरणीय सतविंदर कुमार जी, सराहना के लिए हार्दिक आभार। आशा है मनोबल बढ़ाते रहेंगे।

Comment by vijay nikore on December 13, 2015 at 9:09am

// सच्चा दोस्त अगर किसी के जिदगीं में है तो वही इतनी खूबसूरत कविता लिख सकता है जैसे आपने लिखी //

आदरणीया राहिला जी, आपसे मिली ऐसी सराहना से किसके मन में खुशी नहीं समायगी। हार्दिक आभार, आदरणीया।

Comment by vijay nikore on November 28, 2015 at 4:16pm

आदरणीय मिथिलेश जी,

मेरी कविता को पढ़ने एवँ उस पर काव्यमय-भावनाओं भरी प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति देने हतु हृदय से आभारी हूँ, आदारणीय । सादर।

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on November 12, 2015 at 12:18pm

सुंदर रचना

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on November 11, 2015 at 7:49pm
अति सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई एवम् दीपावली की शुभकामनाएं आदरणीय।

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