For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बचपन

आज के जीवन शैली में
बचपन कहीं नहीं हैं
अल्हड़पन नहीं है
मासूमियत कहीं खो गयी है ।
मोबाइलों ने छीन ली है
खुले मैदानों की चिल्लाहट
टीवी कॉम्प्यूटर चल पड़े हैं
गुल्ली डंडे की जगह पर
खेल हुए है क़ैद स्कूलों में
उनके लिए ही ट्रॉफी जितने
कॉलेज में राजनीती की निति
बच्चों के मन के गलियारों में ।
बचपन बैठा है पिंजरों में
अपने ख्वाबों की उड़ान भरने को ।
खुले आकाश से बातें करता
अपने वजूद को तलाशता ।
बचपन शायद फिर लौट आये
कभी कहीं कोई परिंदा ले आये ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 540

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 22, 2016 at 8:14pm
जी आदरणीय मिथिलेश सर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 22, 2016 at 5:48pm

आदरणीया कल्पना जी, बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. यह भी अवश्य है कि सपाट शैली, संवेदनशील कथ्य और भाव दोनों को हल्का कर काव्य सौन्दर्य को प्रभावित करती है. सादर 

Comment by Samar kabeer on November 22, 2016 at 5:00pm
जी,आपकी सोच सही है ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 22, 2016 at 3:13pm
आदाब जनाब समर साहब । जी आपने सही फ़रमाया बचपन लौटकर नहीं आता कभी नहीं आता । पर इंसान जितना जितना बड़ा हो जाता है कहीं न कहीं उसके बचपन को याद करता है । आज जो बचपन बच्चों को मिल रहा है वो कहाँ ले जायेगा ? सादर । मन में इसी सवाल के चलते इस रचना को लिखने का प्रयास किया है । आप सुधिजनों को रचना पसन्द आई सार्थक हुआ मेरा प्रयास। सादर ।
Comment by Samar kabeer on November 22, 2016 at 2:45pm
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,बहुत ख़ूब अच्छी लगी आपकी कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
"उड़ने दो परिंदे को अभी शौख़ फ़ज़ा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते"
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 22, 2016 at 2:09pm
धन्यवाद आदरणीय गिरिराज सर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 2:06pm

आदरणीया कल्पना जी , बचपने की वर्तमान स्थिति पर सार्थक कविता रची आपने , कविता के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 22, 2016 at 1:50pm
धन्यवाद आदरणीय सुशील सरना जी ।
Comment by Sushil Sarna on November 22, 2016 at 1:29pm

बचपन शायद फिर लौट आये
कभी कहीं कोई परिंदा ले आये ।
वाह कविता जी सुंदर भावों की इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। काश बचपन फिर से आ पाता?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service