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ग़ज़ल- जुबाँ से वक्त तक मुकरा हुआ है

1222 1222 122
बहुत खामोश सा चेहरा हुआ है ।
वो अपने दर्द में उलझा हुआ है ।।

दिखा है आँख में हिलता समंदर ।
किसी के इश्क़ पर पहरा हुआ है ।।

जो गिनता है तुम्हारी धड़कनो को ।
कहा किसने ख़ुदा बहरा हुआ है ।।

मिली जब से नज़र बेहोश है वो ।
यकीनन जख़्म कुछ गहरा हुआ है ।।

तुम्हारे जश्न की चर्चा शहर में ।
सुना कुछ रात का सौदा हुआ है ।।

बड़ा अदना समझ रक्खा है मुझको।
तमाशा क्यूँ मेरे घर का हुआ है ।।

हुआ बदनाम तेरी बेरुखी से ।
गली में नाम फिर लिक्खा हुआ है ।।

न जाने किस मुहब्बत में फ़िदा है ।
बड़ी मुद्दत से वो ठहरा हुआ है ।।

रियासत बिक गई उसकी भी यारों ।
गली से जो कभी गुजरा हुआ है ।।

भरोसे की न तुम पूछो कहानी ।
जुबां से वक्त तक मुकरा हुआ है ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2016 at 2:15pm
आ0 मिथिलेश वामनकर साहब तहेदिल से शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2016 at 2:14pm
भाई सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सादर आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2016 at 2:13pm
आ0 आशुतोष भाई सादर आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2016 at 11:28pm

आदरणीय नवीन मनी त्रिपाठी जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है. बधाई. सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on December 20, 2016 at 2:51pm
नवीन मनी त्रिपाठी जी उम्दा गजल के लिए बधाई,
Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 17, 2016 at 12:01am
आदरणीय नवीन जी इस सूंदर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई सादर

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