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ढूंढ रहा है आज क्षितिज तुम्हें
हाँ वही जो परेशान तुम्हें किया करता था
तुम्हें प्यार करते देख किसीको
अपने आँसूं बहाया करता था

नदी किनारे से अक़्सर देखा करता था
देख कर तुमको वो मुस्कुरा देता था
बादलों से शरारत करने को कहता था
फिर उनमें अपने को छिपा लेता था ।

तुम फिर उसकी तलाश में खो जाती थीं
अटखेलियां करते हुए बादलों से
जब उसका तुम पता पूछा करती थीं
चुपके से वो आड़ से तुम्हें देख लेता था ।

हो तुम दीवानी उसकी जानता है जग सारा
तुम दोनों की प्रीत को मानता है जग सारा
रहता है वो भी बेचैन मिलने को तरसता है
आ जाती हो तुम तो बाहों में तुम्हें समेट लेता है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by vijay nikore on March 8, 2017 at 11:03pm

 सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीया कल्पना जी

Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 8:57pm
बढ़िया भावाभिव्यक्ति हुई है आदरणीया कल्पना जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 8, 2017 at 7:00pm

आदरनीया कल्पना जी , सुन्दर भाव अभिव्यक्ति हुई है , आपको रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 8, 2017 at 7:00pm

आदरनीया कल्पना जी , सुन्दर भाव अभिव्यक्ति हुई है , आपको रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by नाथ सोनांचली on March 7, 2017 at 3:28pm
आदरणीय कल्पना भट जी सादर अभिवादन। भाव सम्प्रेषण बढ़िया है, पर यह रचना में शिल्प क्या है,मुझे सटीक समझ नही आया,सादर। हाँ आप ने भाव उत्तम है।
Comment by Mohammed Arif on March 7, 2017 at 12:15pm
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब, सुंदर भावों की अभिव्यक्ति प्रस्तुत की आपने इस रचना में । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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