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पश्चिम की आँधी

 

पश्चिम की आँधी शहरों से,

गाँवों तक आई.

देख सड़क को पगडंडी ने,

ली है अँगड़ाई.

 

बग्गी, घोड़ी छोड़ कार में,

बैठा है दूल्हा.

नई बहुरिया माँग रही है,

तुरत गैस चूल्हा.

 

जींस पहन कर नाच रही है,

बड़की भौजाई.

 

सपनों में रहते क्रिकेट के,

बच्चे सब खोये.

डॉल बारबी जी के आगे,

कठपुतली रोये,

 

गिल्ली डंडा लंगड़ी खो-खो,

ढूंढ रहे खाई.

 

मोबाइल की तेज हवा में,

फुर्र हुई चिठ्ठी.

बैठ द्वार पर नहीं हो रहीं,

बातें खट-मिठ्ठी

 

तरस रही रिश्ते नातों को,

सूनी अँगनाई.

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

 

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Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 25, 2017 at 8:54pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी, आप बिलकुल सही हैं, यह १६ १० मात्रा पर ही है, फुर्र हुई चिट्ठी १० मात्रा ही हैं, फुर्र/३, हुई/३, चिट्ठी/४, आपने रचना को समय देकर प्रोत्साहित किया, ह्रदय से आभार आपका 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2017 at 9:54pm

आ० १६,१० पर रचा य्ह गीत भी सुन्दर है ,पर  द्वितीय चरणान्त  में दो दीर्घ होने से छंद पकड में नहीं आ रहा है , कृपया छंद से परिचय कराएं .------फुर्र हुई चिठमें ११ मात्राएँ  है . बाकी मैंने पूरा चेक नहीं किया है . सादर .  शीर्षक में अनवधानतावश त्रुटि हुयी है .  

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