For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"आ गए साहबजादे!" माँ के चुप रहने के इशारे के बाद भी शाम ढ़ले घर में घुसते ही, उसके पिता का बड़बड़ाना शुरू हो गया। "जाने कहाँ आवारागर्दी करता फिरता है ये लड़का सारा दिन।"

"कुछ गलत न करे है मेरा बेटा, अब किताबों में भी कितनी मगजमारी करे, कुछ देर दोस्तों में गुजार आवे है तो हर्ज ही क्या है?" माँ ने उसकी तरफदारी की कोशिश की।

"तो वही जाहिल लोग रह गए है दोस्ती के लिए।" पिता ने माँ को भी डांट की लपेट में ले लिया।

"पिताजी, अब ऐसे भी जाहिल न है वे लोग।" वह चुप न रह पाया।

"तो उस 'स्लम बस्ती' के 'नौनिहालों' के साथ मिलकर वहां कौन सा परम ज्ञान बांटते हो तुम! जरा हमे भी तो पता लगे।" पिताजी की आवाज थोड़ी तेज हो गयी।

"पिताजी आप अपनी ईश्वर-भक्ति के लिये दान-पुण्य और कई तरह का पूजा पाठ करते है न...!"

“तो.....?” उत्तर की जगह बेटे के प्रश्न से पिता के चेहरे पर लकीरे खिंच गयी।

"......बस मैं और मेरे जाहिल दोस्त भी थोड़ी सी भक्ति कर लेते है। हमने वहां एक छोटा सा रक्त दान शिविर शुरू किया है जो ब्लड बैंक के साथ तालमेल करके उन गरीबों के लिये निशुल्क रक्त का इंतजाम करता है जो बेचारे हर तरफ से लाचार है।"

"ओह! तो अब उन ‘अछूतों’ के बीच तुम्हे धर्म और संस्कार के मायने भी भी भूल गए।" पिता के चेहरे पर व्यंग झलक आया।

"नही पिताजी, ये संस्कार ही तो हैं जो मुझे प्रेरणा दे रहे है और धर्म.., धर्म तो सदा कर्मो के पीछे पीछे चलता है।" बेटे की आँखें अनायास ही पिता की आँखों से जा मिली थी। "यही पाठ तो पढ़ाया था आपने वर्षो पहले, जब इसी ‘स्लम बस्ती’ के एक अछूत ने अपना खून देकर माँ का जीवन बचाया था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

विरेंदर वीर मेहता

Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 19, 2017 at 5:05pm
आदरणीय विजय शंकर जी कथा पर आपकी भाव भरी उपस्थति और प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिए तहे दिल से आभार.... उत्तर देने में विलंब होंने के लिए अवश्य क्षमा चाहूँगा आदरणीय.... सादर.
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 19, 2017 at 5:03pm
आदरणीय भाई महेंद्र कुमार कथा पर आपके स्नेहिल शब्दों के लिए बहुत बहुत आभार.... उत्तर देने में विलंब हुआ जिसके लिए सादर क्षमा चाहूँगा..
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 19, 2017 at 5:01pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी रचना पर आगमन और प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार.... उत्तर देने में विलंब के लिए सादर क्षमा आदरणीय..
Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2017 at 10:33pm

बढ़िया लघुकथा है आ. वीरेन्दर वीर मेहता जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 5, 2017 at 9:17am
आदरणीय वीरेंद्रवीर मेहता जी , बहुत ही सुन्दर लघु कथा , ह्रदय से बधाई , सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on July 5, 2017 at 5:46am
आद0 वीरेंद्र जी सादर अभिवादन, संवेदनशील लघुकथा पर आपको बधाई निवेदित है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
12 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service